SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५ अलावा, भोजनमें चिंटी खानेमें आ जावे तो बुद्धि मंद होती है। जू जलोदर रोग पैदा करती है. मक्खी वमन करवाती है. ( माता पुत्रकी व्यवस्था रहीत होने से ) है. खाना पीना पराधीन होता है. सिर्फ मनुष्य गति में उनको सच्चे शास्त्र का भरोसा है, जिससे त्याग करते है. जो पुन्यवान आत्मा रात्रि भोजन के पारावार दुःख को समझते है. मोक्षः याने मनुष्य काही कर्त्तव्य करना चाहिये. त्याग याने दान अर्थात् अभयदान देना चाहिये की जिसका फल शिव है. उसको प्राप्त करना चाहियें. अठारह पापस्थानक में पहिले प्राणि हिंसा व्याग करनेकी है. फिर दुसरे स्थानको की त्यागवृत्ति होती है. अथवा पहिले प्राणातिपात विरमण व्रतका पालन करना वो दुसरे व्रतों की संभाल के लिये क्षेत्रकी वाढ रूप है । अपने लिये या दूसरे के लिये हिंसा नहीं होनी चाहिये। ऐसी अच्छी चाल रखने के लिए रात्रि भोजन का त्याग चार प्रकार से सर्वज्ञ, सर्वदर्शि, परमात्माने परोपकार करने के लिये अनेक शास्त्र द्वारा फरमाया है. साधु मुनिराज रात्रि भोजन का सर्वथा त्याग करते है. याने पंच महाव्रत के साथ छठे व्रत का पालन करने को सुचना की है. दुसरे जीवो को भी मनुष्यों की तरह कान, आंख, नाक, मूंह वगैरह होते है. परन्तु विवेक पूर्वक अच्छे वर्त्तन रूप धर्म, मनुष्यों को ज्यादा है. अनादिकाल से जीव खाता आया है । मगर तृष्णा नही छोडी वहांतक सन्तोष वृत्ति का सुख नहीं मिल सकता है 1 1 सूर्य होता है. जबही वातावरण स्वच्छ रहता है. और वो नहीं हो उस वक्त याने रात को वातावरण बिगड़ता है। ऐसे बिगड़े समय में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy