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ठंडी ऋतु में पन्द्रह दिन, व गर्मी की ऋतु में एक मास अचित्त रहता है. उसके बाद सचित्त हो जाता है." इस तरह काल मान का रंगत देखते हुवे घरमें ही तवा या कड़ाई बगैरे लोहे के बरतन में शेक कर अचित्त किया हुवा निमक का इतना काळ मानने में आता है. क्यों कि भट्टि में पक्का हुवा बलमन का काल तो प्रवचन सारोद्धार वगेरे मैं बहुत बड़ा-प्रभूत कहते है। दो चार वर्ष या उसके उपरान्त कुछ समय तक अचित्त रहता है । अर्थात् उसका काळ बहुत समझना। श्रावक मूळ भांगे सचित्त परिहारी होता है। जिससे प्रमाद को त्यागकर तमाम सचित्त वस्तु का त्याग करना चाहिये। सर्वथा नहीं बन सके तो, सचित्त निमक का तो अवश्य त्याग करना चाहियें.
१४. रात्रि भोजन:-इस जन्म व आगामी जन्म के लिये महा दुःख का कारण होता है. रात्री को चारो आहार अमक्ष्य है. रात्रि भोजन करनेवाला आगामी जन्म में उलुक, काग, गीध, भुंड, बिच्छु, घो, बिल्ली, चुहे, सर्प, वागोल, चामचिड़ीया वगैरह के भव करना पड़ता है. व महा दुःखी होते है
और उनको धर्म का मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है। जो मनुष्य खुद रात्रि भोजन करते है. उनके पुत्रादिक की भी बुरी आदतें पड़ जाती है.
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