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जाय, तब तक अचित्त नहीं होता. क्योंकि निमक की योनि बहुत सूक्ष्म है, वास्ते उसको अग्नि रूपी शस्त्र जब तक बराबर नहीं लगे, तब तक अचित्त नहीं हो सकता. मुनिराज श्रीवीरविमलजी महाराज सचित्त-अचित्त की सज्झाय में लिखते है कि
अचित्त लवण वर्षा दिन सात, सियाले दिन पन्दर विख्यात । मास दिवस उन्हाळा मांहि, आघो रहो सचित्त ते थाय ॥ १ ॥ + यानी- “अचित्त किया हुवा निमक वर्षा ऋतुमें सात दिन,
शस्त्र बराबर नही लगे तबतक अचित्त नहीं होता. अन्यथा शंकाशील जानना, अचित्त निमक निकालतें वक्त हाथ साफ करके निकालना चाहिये, नहीं तो सचित्त पानी का एक बिन्दु मात्र सचित्त हो जाता है. इसलिये बहुत ध्यान रखना चाहिये.
पड़ने से निमक
+ इस दुनिया में आहार, भय, परिग्रह और मैथुन यह चार संज्ञा तमाम जीवो को होती है. देव देवीयों को कोई व्रत पच्चक्खाण नही होता. जिससे वो पिछले जन्म के मुनाफे का भोग करके फिर परभव में खाली हाथ से जाने वाले होते है. तथा नरक गति में सिर्फ दुःख सहन करते है. इसी तरह वो रात या दिन देखते नहीं. जीससे व्रत नियम का वहां पालन व शुभ कार्य नहीं किया जाता है. सबब पुन्यका बंध नही पड़ता. और तिर्यच गति में पशु पक्षि सर्व विवेक हिन होता
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