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________________ ३६ उसके करोलिया, कुष्ट रोग पैदा करता है। अरूवेश प्रमुखका कांटा तथा कष्ट के टुकड़े तालवे को चीर डालते है । बडा वगेरे या खानापिना फीरना राक्षस, भूत और प्रेत के मुताबिक है. और निशा - चर ( रातको आहार लेने वाले घुबड़ बिल्ली) जैसे कहने में आते है... भोजन बनाते वक्त जहरी जीवों की तंतुवें किसी वक्त पड़ जाय, तो देखने में नही आते, और फिर उससे अवसान होनेका कइ उदाहरण मिलते है. जैसे किसीको मारकर भाग जाना अन्याय है. वैसेहि भोजन कर सो जाना अनारोग्यकर है। वास्ते सूर्यास्त के पहिले भोजन कर लेनेका वेद पुराण में भी लिखा हुवा है। उसका उलटा अर्थ बताकर उपर बताये हुवे शास्त्र की आज्ञा का भंग करते है. चुंटी, कुंथुं, जू, इयल, उधई, मच्छर, वगैरे बहुतसे छोटे बड़े जीव का घात रात को खाने पीने से होता है. इस बात को तमाम कबूल कर सकते है. यानी वो प्रत्यक्ष देखने में आता है. वास्ते यह काम आर्यों को भूषणरूप नही है. जब मांगने से नही मिले और जोगवाई भी न हो, या बिमारी में लंघन कर भूखा रहे. उससे रात्रि भोजन का फल नहीं मिलता, परन्तु शक्ति होने से हरेक चीजकी जोगवाई मोल जाय तो भी त्याग भाव से इच्छा का रोध करना चाहिये, ऐसा करने से रात्रिभोजनका त्याग करने से दररोज आधा उपवास का महाफल होता है. (१) पुराण आदि वैदिक शास्त्रो में भी रात्रि भोजन का महा पाप बतलाया हुवा है. उस कारण से - सूर्यास्त न हो, उन्हे पहिला भोजन करने का फरमान किया है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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