SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (स्पर्शास्पर्श) छुने छाने आदि बुरी बातों का विचार नहीं करते। इसी तरह आगामी जन्म का [इस जन्म में गुरू बड़े व ज्ञाति आदि का भय न होनेसे] डर नही रखते हुवे निर्भयता से नाश होने के कारण नही समझते हुवे इन मामूली चीजों से खुद अपने मन की इच्छाओं तृप्त कर के खुद आत्माओं को भ्रष्ट कर देते है। अफसोस! यह बात कितनी दुःखप्रद है ? बन्धुओं! दुसरे जीवों को होता हुवा दुःख का कुछ विचार अपने विचारशील दिमाग पर लाकर ऐसी तुच्छ चीजों का हमेशा के लिये त्याग करना चाहिये । व बिगड़ी हुई बातों को सुधारना चाहिये । [कितनेक वैद्यो का मत है कि-"बुखार के अन्दर बरफ बहुत से काम में लाया जाता है. अगर शरीर नाशक बुखार हो तो चाहे जितने मण बरफ रखने में आये, तो भी उसीसे बच नहीं सकता. और शरीर को विनाशकारी जैसा न हो तो, उस समय के जोसके बाद चाहे जैसा बुखार हो, कम होते ही सिर का भार हलका हो जाता है, इतनी बात ठीक है कि-बरफ रखते समय बीमार को आराम पहुंच जाता है, .परन्तु जोरदार बुखार हो तो बरफ को हटाते ही फोरन उसको बुखार का असर मालूम पड़ने लगता है. इसी तरह बरफ रखने का रिवाज बढ़ता जाता है. परन्तु बरफ रखने से नुकशान होता है. यानी जहां बरफ रक्खा जाता है वहां का खून घट्ट हो जाता है. जैसे आईस्क्रीम [ बरफ दुध आदि वस्तुओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy