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अपनी स्वास्थ्यता कायम रखने के लिये कई मनुष्य मक्ष्यामक्ष्य का विचार नहीं करते हुए ऐसी चीजें व्यवहार में लाते है। लेकिन हे भव्यात्माओ! उसका-किंपाक के फल के समान-फल बहुत नीच गति में जाकर भोगना पड़ेगा, तनिक उनका भी विचार करो । अनादिकाल से स्थूल शरीर का पोषण करते हुए ही यह जीव चारों गतियों में पर्यटन कर रहा है । लेकिन पवित्र मन के बिना आत्मा का कल्याण कैसे हो सकता है ? इस लिये जन्म, जरा, मृत्यु, आधि, व्याधि
और उपाधि के दुःख निवारण करने के लिए इन अभक्ष्य पदार्थों का सर्वथा त्याग करो। धन्य है राजकुमार वंकचूल! तुमने, प्राण त्याग दिये लेकिन मांस भक्षण नहीं किया। और फलतः देव गति प्राप्त की। __ हम ऐसे महापुरुषों का अनुकरण करना कब सीखेंगे? और मोक्ष-श्री को कैसे प्राप्त करेंगे?
जैसे दूध बिगड़ जाने पर खाने लायक नहीं रहता, उसी प्रकार दहीं भी जमाने के बाद दो रात्री के बाद में जंतु पड़ जाने से अभक्ष्य हो जाता है। सांड ( उटनी) के दूधमें अंतर्मुहूर्त के बाद जीव पैदा हो जाते है । अतः अभक्ष्य हो जाता है । उसी प्रकार सर्वज्ञ जिनेश्वर देवने मक्खन को भी अमक्ष्य कहा है । छाछ (भेद) में मक्खनका आ जाना संभव है । विरतिवंत जीवों को छान कर छाछ को काम में
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