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________________ लेना चाहिये । और अनजान में नहीं आ जावे इसकी पूरी २ यतना रखनी चाहिये । मक्खन में छाछ में से निकलते ही अंतर्मुहूर्त में तद्वर्ण जीवोत्पात्ति हो जाती है। जिनेश्वर भगवंतोने जो धर्म बतलाया है, वो सत्य मानना चाहिये. [आगम गम्य पदार्थो से कितनेक पदार्थ प्रयोगगम्य कर सकते है. परन्तु ऐसे साधनो करने में बड़ा भारी खर्च का सामना करना पड़ता है. अथवा सूक्ष्म हेतुवाद समझने में बहुत गहरे अभ्यास और सूक्ष्म बुद्धि की जरूरत पड़ती है. वैसे साधन और समझने की शक्ति न होने से सर्वज्ञ भगवंतों की वतलाई हुई हरएक बात सत्य मानना चाहियें.] (उपसंहार ) उपर बतलाई हुई चार महा विगई को [ मध, मदिरा, मांस, मक्खन ] का अवश्य त्याग करना चाहिये. प्रभु की आज्ञा पालन करना यह धर्म है, और उसमें दया, संयम तथा निर्मल जीवन का लाभ समाया हुवा है. यह चार विगई खाने वाले जिन्दे रहते है, और नही खाने वाले मर जाते है. यह बात नहीं है। तो फिर क्योंकर पाप में पड़ना ? १० बरफ बरफः हीमः और ओते. इन तीन चीजों में एकी सरीखा दोष होता है. अपकाय (हरेक सचित्त पानी का एक बिन्दु असंख्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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