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इसी हिसाबसे श्री जैन शासनमें पंदरह कर्मादान छोडनेकी दरेक धर्मात्मा पुरुषको हमेशके लिए खास तौर पर कहा है । कितने ही दगाखोरलोक घीमें चरवी और वेजीटेबल नामके घी की मिलावट करते हैं । विलायती बिस्कुट वगैरह में अभक्ष्य पदार्थका मिश्रण की संभावना होतो है। आज कल कितनेही लोक ऐसी चीजोंको खाते है । यह वास्तव में खेदजनक ही है । उसीसे बिस्कीट [किसी २ बिस्कुट या चोक्लेट में इंडे का रस या शराब चीज स्वाभाविक ही होने का सुना जाता है। गाय के मांस की भी चोक्लेट आती हैं। अपने यहां पतासें आदि के बदले बच्चों को पीपरमेंट की मीठाई बांटी जाती है, यह हमारी बड़ी से बड़ी भूल है । क्योंकि भविष्य में अपनी भावि संतान को मांसाहारी बनाने की यह प्राथमिक योजना है । पीपरमेंट की गोलियों में से छोटी चोक्लेट और उसमें से बड़ी चोक्लेट तथा उसमें से ज्यादा बड़ी चोक्लेट व उसमें से उसीसे अधिक बड़ी, और कीमति और विटामिन्स वाली-जो लग भग मांस में से ही बनाई जाती है-उस तरफ-धीरे २ आकर्षित किया जा सकता है ) आदि घृणित चीजों को छूना भी न चाहिये।
कितनी ही विलायती औषधिएं जैसे कि कॉड लीवर ऑइल (कॉड नामक मछली का कलेजा का तेल), कॉड इमलशनबोपरील और बम्बई आदि चरवी इत्यादि के संभेलसे बनाते हैं । इसका त्याग करना अत्यावश्यक है।
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