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जैसा हाथी और इंद्र वा महादेव की सवारी जैसा हाथीसिंह या वाघ को मारने में कैसे योग्य गिना जाय ? वास्तव में एसा जीव हिंसा का विचार भी अधोगति में जाने की सूचना करता है।
कसाई अपना मांस बेचने का धंधा करते होते हुए भी बकरा भालू या पाडा का गला स्वयं काटते ही नहीं। परंतु एकदो पैसा देकर गलकहा वगैरह नीच के हाथ में छुरी फीराते हैं। क्योंकि वैसा करने में वे भी पाप मानते ही हैं [अतः "मांस खाने में पाप है" इस बात में हरेक आदमी सहमत है ]
इस के शीवा मांस के अंदर क्षण २ में अनेक त्रस जीव उपजते हैं। मांस अग्नि ऊपर के पकातेहो और पकाये पीछे भी वे उपजते ही रहते हैं। उसका प्रमाण यह है कि"पड़े रहे हुवे शब में बड़े २ कीड़े पड़ जाते हैं, परंतु वे कीड़े समय पर बड़े होते जाते हैं । पहिले तो वे बारीक होते हैं । शरीर में से अलग हुवा मांस यह मरा हुवा भाग है । इस लिए वह शरीर से छुटते ही सड़ने लगता है। और तुरंतही उसमें उसहीके रंग के कीड़े-जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं । अतः भी “ मांस खाने में असंख्य जीवों की हिंसा होती है " एसा परोपकारी महापुरुषोने कहा है । अतः हरेक प्राणि को अपने ही समान जानना और उनकी हिंसा से बचना । मांस वगैरह प्राणिजन्य-खान-पान तथा औषध वगैरह का कोइभी प्रकार का उपयोग करना ही नहीं चाहिए।
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