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वाहन और खेती के साधनों के बढ़ते हुए भी बड़ी संख्या में पशु कतलखाने ले जाए जाते ही है । इस लिये इस देशमें भी यांत्रिक कतलखाने बढ़ते जा रहे हैं। उन के बढ़ने में देशी कतलखानों की वध-क्रूरता का वर्णन, दूधवाले पशुओं को बचाने का प्रयास, यह सब जीवदयादि मंडळी वगैरह की प्रवृत्तिए साधन तरीके हो रही है।]
किसी २ (बौद्ध) धर्म वाले ने तो "मुर्गा, हरिण और मछली वगैरह के मांस भक्षण से अनेक प्राणियों को मारने का पाप होता है। उस से बचने के लिए एक हाथी को मारने से उसका मांस बहुत समय तक चले, जिससे एक ही जीव कीथोड़ी हिंसा होती हैं"। एसी झूठी दलीलें चलाई हैं। जिससे जीव दया पालने की शोभा भी ली जा सके, और मांस भी खाया जा सके ! क्या यह न्यायसंगत दलील है ? [बड़े प्राणि को मारने में बड़ी महनत पड़ती है, इस लिए उसे मारने के लिए अनेक युक्तिएं करनी पड़ती हैं। जिस से ज्यादा तीव्र हिंसा के विचार में मन विचरता रहता है । उसी तरह से क्रूरता भी अधिक मन में उत्पन्न होती है। ___ सारांश-कोई भी प्राणी को मारना हिंसा ही है और बड़े शरीर वाले को मारने में बड़ी हिंसा होती है ] जो लोग अपने देवी देवताओं के वाहन तरीके से या देवीकी आकृति के तरीके से कोई २ मनुष्य मानते हैं, वे गणपती की आकृति
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