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उस के मुख्य तीन भेद हैं-१ जलचर में मछली वगेरह का, २ स्थलचर में पाड़ा, बकरा, हिरण, गाय, घंटा, (सूअर), खरगोश, ३ खेखर में चड़िया, मुर्गी, कबूतर वगैरह का । अनेक पंचेद्रिय प्राणियों का शिकार करके और धंधे के लिए ही मारकर मांस तैयार होता है । निरपराधी होते हुए भी वे बिचारे मारे जाते । वे सभी प्राणि अपनी २ माते के रुधिर
और पिता के वीर्य से जन्मे होते हैं। इस लिए यह अत्यंत निंदनीय है। क्षत्रीय वगेरह मांसाहारी कितनेक हिंदू और मुसलमानों के दारु मांस त्यागना ही योग्य है। एसा मलिन पदार्थ सभ्य मानव के खाने लायक माना ही कैसे जाय ? जंगली मनुष्य-मनुष्य का मांस खाते हैं, उन से कुछ सुधरे हुए लोगदूसरे प्राणियों का मांस खाते हैं। इस बात को विचामते हुए भी सभ्य मनुष्य के लायक यह खुराक है ही नहीं।
पुरान में तथा कुरान में भी मांस अभक्ष्य तरीके फरमाया हुवा है, तो भी बल, पुष्टि और जीहा के लालच से एसे अखाद्य पदार्थ खाते हैं । तथापि दूसरों के प्राण लेते हुए भी वगेरह का मुख्यता से और अधिक प्रमाण में उपयोग किया जाता हैं ] वे दवाइएं तुरत फायदा करती हुई मालूम पडती है । परंतु " नये रोग उत्पन्न करती हैं और परिणाम स्वरूप आरोग्य को नुकसान करती हैं और आयुष्य का ह्रास करती हैं"। ऐसा अनुभवियो का पक्का मत है।
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