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करने की थाली अथवा पात्र उसी समय धोके पी जाना चाहिये । इस और बड़ी बड़ी रसोइयों में बडी बेफिक्री की जाती है। इसके फल स्वरूप लोग जूठा बहुत डालते है-और इस ओर कोइ भी ध्यान नहीं देता-इसलिये नियमवान् श्रावकों को तथा दूसरे भी श्रावक भाईयों को ऐसे समय ध्यानपूर्वक जरूर अपनी आवश्यकता अनुसार खाने की सामग्री लेना, जिससे जूठा डालनेका प्रसंग ही आवे।
६ इसी भांति जल (पानी) के वोटने में भी समजने का है। किसी बेड़पात्र में पानी काम में लाने के लिये उसमें से पानी निकालने के लिये एक अलग ही पात्र रखना चाहिये। क्योंकि जूठे पात्र पानी के अन्दर डालने से भी वही दोष लाता है, जो भोजन जूठा छोडने से लगता है। इसीलिये-इस ओर भी खास ध्यान देना आवश्यक है। काठीयावाड-गुजशत मा ल्वा तथा दूसरे प्रान्तों में यह दोष बहुत अधिक प्रचलित है इसलिये ये लोग अधिक समालोचना के पात्र है। इपलिये उपरोक्त स्थानों के सभ्यों को अधिक फिक्र लेना चाहिये। ताकि वे अधिक तीव्र आलोचना के पात्र न हो सके. इस प्रकार उनके सम्हलने की पूरी आवश्यकता है___आखिर इस पुस्तक में बुद्धि हीनता, उत्सूत्रता-इत्यादि स जो कोई दोष लगा हो, तो उसकी क्षमा प्रार्थते हैं। इति शुभम्
सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं सर्व-कल्याण-कारणम् । प्रधानं सर्व-धर्माणां जैनं जयति शासनम् ॥१॥
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