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प्रकरण १२ वां परमाहत महाराजाधिराज भूपाल श्रीकुमारपाल गूजरेश्वर के बारह व्रतों की संक्षिप्त नोंध• महाराजाधिराज कुमारपाल की राजधानी गुजरात स्थित अणहिल्लपुरपाटण (Anhilwada) थी। उनके आधीन उस समय सब से अधिक प्रदेश था-उस समय समस्त भारत के गुजरातेश्वर ही सब से बड़ा शासक था-इतना होते हुए भी "परमाईत महाराजा विद्वान् और धर्म के पालन में कितने कट्टर थे-और जैन धर्म का किस मांति पालन करते थे? वह आज भी जानने से कई जीवों को आज भी उससे लाभ हो सकता है क्योंकि वे इतने बड़े महान् शासक होते हुए भी, कई जवाब रियों होते भी इस प्रकार धर्म का पालन करते थे-तब तो हम उनके सामने कुछ भी नहीं हैं-तब फिर हम आलस्य को त्याग कर हमें धर्म का पालन क्यों न करना चाहिये? हमारे पास उनके समान बन्धन और कठीनाइयां कहां? तथा उली प्रकार उनके समान वैभव तथा सुविधाएं कहां? तब फिर किस कारण आलस्य में पड़ना योग्य है ?" . * यह नोंध और इस अभक्ष्य अन-तकाय के मूल लेखकजुनागढ़निवासी शा. पाणलाल मंगलजी हैं। दीक्षा अंगीकार करने के बाद उनका नाम मुनि पुण्यविजयजी था] यह नोच उन्होंने मुनि अवस्था में ही लिखी थी-उसमें कुछ फर्क करके, आवश्यकता पूरा हो हमने यहां दिया है।
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