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________________ विवेचन न कर के यही लिखना प्राप्त होगा कि-जिस लिये मोरी तथा जलाशय में स्नान न कर के पूर्ण रीति से जयणा (जीव जन्तुओं की रक्षा) करते हुए मुखे रेती वाले अथवा धूप वाले स्थानपर करना ही विशेष श्रेयस्कर है। .. __ इतना खास ध्यान रखना आवश्यक है कि-लघुशंका अथवा दीर्घशंका का निवारण जिन मंदिर से एक सोहाथ करीब दूरी पर करना चाहिये । इसी प्रकार नाक का सेंभडा, खेकार. इत्यादि जिन मंदिर के चोक में भी तथा आसपास नहीं डालना चाहिये । कई स्थानों पर जिन मंदिर के पास में ही कोई कमरा स्नान करने के लिये होता है- जिसका पानी एकत्रित हो कर गटर में जाता है। ऐसे स्थान पर-मुँह साफ करना, खंकार डालना-नाक साफ करना, साबुन इत्यादि से स्नान करना भी अनेक दोषो का कारण है । इस लिये इन बातों को जानते हुए भी जो लोग अनजान बन कर जो इस काम को चलाते है, अथवा प्रोत्साहन देते हैं, वह भी इस दोष के जवाबदार है-इसीलिये जिन से बने उन्होंने यथाशक्ति उपाय खोज कर इन दोषों को दूर करने का भरसक प्रयास करना योग्य है। ५ शास्त्रो में कहा गया है कि-भोजनमें से जूठा (ऐंठा) रखना नहीं । इनका मतलब-भोजन करने समय हमारी थाली में अथवा पात्रमें जिसमें हम भोजन कर रहें है, उसमें से भोजन करते करते बाकी नही छोड़ना। क्योंकि इससे उसमें दो घडीमें असंख्य समूमि जीव उत्पन्न हो जाते हैं। इसीलिये भोजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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