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देशी और बिलायती अनेक तरह के दारु बनते हैं। वह हरेक सर्वथा त्याज्य ही हैं । ताड़ी वगेरह भी त्यागने योग्य है। सारंश कोई भी प्रकार का केफी पीना, हिंसा दृष्टिसे, आरोग्य दृष्टिसे, नैतिक दृष्टिसे। और सभ्य और लायक जीवन की तथा संयमी जीवन की दृष्टिसे भी त्यागनीय ही हैं। [विलायती या देशी शराब चाहे किसी प्रकार का हो, नुकसान प्रद ही है। इसी लिए इसे सात व्यसनों में गिनाकर अपने शास्त्रकारोंने उसे त्याग करने के उपदेश पर बहुत ज्यादा जोर दिया है । इस रीति से प्रभु की आज्ञा के मुताबिक अपने सर्व लोक के हित के लिए उपदेश दे सकते हैं। देशी शराब के बनावट के साधन धबं हो जाय, और विलायती शराब ही शुरु होवे (जारी रहे), इस वास्ते शराब बंदी की अभी
४ बी फाइरीन वाइन-(पेटा) गेडी के मांस युक्त ब्रांडी। ५ कारतिक लीक्विड-मांस भिश्रित । ६ एक्सट्रेक्ट चिकन-मुर्गी के बच्चों का रस । ७ सरोवानी टोनिक-स्प्रिट (मदिरा) युक्त । ८ एक्सरेट मोल्ट-मधु और मांस मिश्रित । ९ वेसेन इन-सूवर-भालू की चर्बी । १० पेपसीट पाउडर-कुत्ते और डुक्कर के अण्डकोष का चूर्ण । ११ [पलोल तथा बहुत से इंजेक्शन-भी एसे ही हिंसामय और अभक्ष्य
पदार्थों में से बनाए हुए होते हैं।]
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