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________________ पात्र (जिनमें दृष्टि नहीं पहुँच सक्ती ऐसे सुरई, लोटे आदि) काममें लानेसे लगते है। समयानुसार काँसेके अथवा कलईदार तांबे-पीत्तलके - वर्तन सामान्यरूपसे अच्छे माने जाते हैं। फिर हाल इस दुनियाका वेग विचित्र गतिसे चल रहा है। न जाने किस प्रकारकी हवा वह रही है, समझमें नहीं आता। यहाँ तक कि हम अपने पूज्य पूर्वजों की पद्धति और मार्गको तिरस्कार भरी दृष्टिसें देखते हुए उसे मिटाकर अब टीन-लोहे के पात्रोंका आदर करते हैं। एसा पात्र जैन या हिंदु बंधुओंको उपयोग करना मुनासिब नहीं । सामायिक पत्रोंसे पता चलता है कि ऐसे पात्रोंमें ग्लेज के वास्ते अंडोंका रस काममें लिया जाता है। और जीवित बैलोंको मारकर उनके आंतड़ियोंके तरल भागका भी उपयोग कहते हैं। वस्तुतः यह बात त्रासजनक है। वास्ते एसे वर्तनोंका शीघ्र त्याग कर देना चाहिये । ऐसी सस्ती व चडकीली भड़कीली चीजें परिणामरूप बहुत मँहगी और निरर्थक होजाती हैं। इस प्रकारकी वस्तुओंका इस्तेमाल करनेसे हम थोडे समयमें ही कैसी निर्धन अवस्थाको पहुँचे हैं ? कि. जिस वस्तुकों खरीद कर काममें लेनेके बाद उसकी कुछ भी कीमत उपज नहीं सक्ती ! परन्तु कांसे अथवा तांबा-पीत्तलके बर्तनोंकी फूटे ढूंटे बाद कभी भी मूल कीमतसे आधी अथवा उससे भी कहीं ज्यादा रकम अवश्य उपज जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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