________________
चार विगइओ. ६ मधु
७ मदिरा ८ मांस
८ मक्खन इन चार ही वस्तुओं के रंग के जैसे असंख्य जीव उन में हमेशां (निरंतर) उत्पन्न होते हैं, इस वास्ते अभक्ष्य हैं । तथा ये चार महा विगई अति विकार करने वाली हैं। [इसी लिए मानसिक और शारीरिक दोष भी उत्पन्न करने वाली हैं] उन का विशेष वर्णन योगशास्त्रः जैन तत्त्वादर्शः वगेरह बहुत से ग्रंथों में बतलाया है । इस लिए यहां संक्षेप में ही कहना चाहिए।
६ मधु-वागरीये, भील आदि जाति के लोग मधु के छत्ते-(माले) लाते हैं। वे लोग प्रथम शहद की मक्खियों के छत्ते की नीचें धुंवा करते हैं, इस से उन को अत्यंत दुःख दे कर उन के निवास रूप इस छत्ते में से बहार निकालते हैं। उस छत्ते में उड़वे में अशक्त उन के छोटे बच्चे होने से, वे सब अपने प्रिय प्राणों से मुक्त हो जाते हैं। एक आदमी का बहुत वर्षों तक, अत्यंत परिश्रम से संग्रह किया हुवा धन एक ही रात में चोर आकर चुरा ले जावे तो उस को तथा उसके कुटुंबियों को कितना भारी दुःख होता है ? इसी प्रकार से इन अनेक जीवों के बहुत समय पूर्व से किए हुए परिश्रम से अपने निर्वाह के लिए तैयार किये हुवे शहद को [मधुपोडं-विश्राम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org