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स्थल - गृह ] वागरीये वगैरह अनार्य स्वभाव के लोग अत्यंत कष्ट दे कर लूट जावें, तो उनको कितना दुःख होता होगा ? और एसे हिंसक लोगों को हम उत्तेजना देवें, वह कितना ज्यादा त्रासजनक है १
फिर मधु में निरंतर असंख्य जीव उपज ते है । इस से उसका अवश्य त्याग करना उचित है ।
१ रस लोलुपता से कोई मनुष्य शहद खावे, यह बात तो दूर रही, परंतु औषध के तौर पर मधु खावे तो भी वह नरक का कारण है । जैसे जीवित रहने के लिये कोई भूल से कोई कालकूट विष की कणी मात्र भी खा जाय, तो वह अवश्य ही मर जाय । उसी प्रकार से मधु खाने से नरक गति प्राप्त होती है । इसी लिए अन्य मत के पुराण वगैरह शास्त्रों में भी उसका त्याग करने के लिए कहा है । आत्मार्थी शूरवीर जीव अन्य जीवों को स्व- समान गिनकर एसी अभक्ष्य चीजों का सर्वथा त्याग करते हैं । और महारोग आवे या प्राणांत कष्ट आवे, तो भी इनका स्पर्श तक नहीं करते । उनको सहस्र वार धन्य है ! इस लिए हे बंधुओ ! प्रमाद को छोड़ कर इस चीज को त्यागने के लिए शूरवीर बनो ।
[ वर्तमान समय में शहद को खुराक तरीके उपयोग में लाने के लिए अधिक प्रमाण से प्रयोग करने के लिए राज्य की तरफ से बहुत खर्चा कर शहद की मखियों कों पाली जाती
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