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________________ १४६ अंदरसें कीडे देखने में आतें हैं । ख्याल रक्खो तो भी यह जीवोंकी हिंसा हो जाती है, इसी लीए वरसादकी ऋतुमें खास करके उपयोग में नहि लेना । कारेले, तुरीए-वगैरह उपरका विभाग खड्डेवाले-खडबचडे होनेसें उनमें कुंथुंओं वगैरह बारीक त्रस जीवों घुस जातें है, वास्ते वैसी वनस्पति, पुंजनीसें ख्याल पूर्वक पुंजकर समारना चाहिए. और वनस्पतिओंकी तरकारी शुद्ध करके वापरना युक्त है । ठंडी ऋतु में भी भाजी पान वगैरह उपयोग पूर्वक चालकर शुद्ध करके वापरना ठीक है । उनमें भी सब जातकी भाजी छान वापरना । क्योंकी उनमें कीडे, कुंथुं वगैरह त्रस जीव नीकलतें है । तब उनका ख्याल आता है, और तीन वख्त छांननेसें जीव नीकल जाय, तब वो फेंक देने योग्य रहता है । वापरना न चाहिए । प्रकरण ७ वां चालु वापरनेमें आती हुइ वनस्पति औरउनके बारेमें विवेक रखने की आवश्यक्ताएं. तरकारीमेसे काम में लेने के योग्य, और कच्चा-पक्का फलमेंसे काममें लेने योग्य शाक १ काकडी, विगर मूल पानकी Jain Education International For Private & Personal Use Only फळ तरबुच www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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