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प्रसूति वगैरह भयंकर रोग का कारण हो, तो भी यह चीजें बील्कुल दृष्टिसे दूर रखने योग्य है। स्त्री वर्ग में हरेक वस्तुओं खानेकी (जीभको स्वाद लेनेकी) लालसाए ज्यादा रहती है। उन्होने पापका भय समजके अवश्य वर्जना चाहिये ।
३ सरगवेकी शींग--फाल्गुन शुक्ल पूर्णीमा बाद उनके बीज त्रस जीवो उत्पन्न हो जाते है, उसे आठ महिने तक उनका त्याग करना।
४ कोबीज (कर्मकलो)-उनके पत्तेमें उनके जैसा रंग की ही त्रस जीव होतेहै. और वो मालूम नहि होता-जीस्से वो आठ महिना तक वर्जनीय है. और योग्य ऋतुमें भी संभाल पूर्वक पत्तोंको देखके वापरना युक्त है. उनकी वास और पत्ता दोनों देखतें ही प्याजकी जातिका याद दीलाता है, वास्ते वो त्याग करना युक्त है.
वरसादकी ऋतुमें (आशाड शुक्ल १५ पूर्णीमा सें कार्तिक शुक्ल १५ पूर्णमा तक) त्रस जीवोंकी उत्पत्तिका सबबसे अवश्य त्याग करने योग्य वनस्पतिआं:
१ सें. ४, भींडे, कंटोले, तुरीए-दूसरी ऋतुओं में उनमें भी जीव तो होतें है. चातुर्मासमें ज्यादा कीडों वगैरह जीवोंकी उत्पत्ति होती है, और कारेले वगैरह बहारसे कुछ थोडा भी सडा हुआ नहि दीखता. और उनको समारते वख्त
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