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________________ १४४ । भुलं कोडं--अन्य दर्शनीय वगैरह उनको देवी आदिकी पूजामें घेटें की कल्पना करके उनका बलीदान देते है। इससे वो वर्जना ( औषधादि कारणोंसे प्रमाण रखा जाता है. ) कोळु--बडा फल होनेसे कीतनेक नहि वापरतें । कडे तुंबडी (कडु दूधी)--कीसी वख्त झेरी नीकल जाय तब आत्मघात होता है. वास्ते अनाचरणीय है। __ पक्के केटोले, कारेले, टांमेटे, ककोडे-उनके प्रथम रंग हरा होता है, और पकनेसे लाल हो जाता है। उनमें और कंटोले और कारेले में जीवांत बहुत पडती है । टींडोरे में बीज खूब रहते हैं, वास्ते यह चीजेंका अशुद्ध परिणाम होनेके सबबसे और त्रस जीवोंका हिंसा होनेके लीए त्याग करना. इनकी ज्यादा समज " श्राद्ध विधिमें" दिया है। ___ मधुक-महुडेके झाड के फळ, जीनको महुडे कीया जाता है। उनमें से दारु वगैरह बनता है । वो नीशेवाली चीज और अशुभ परिणाम करनेवाली होने से वर्जनीय है । फीर त्रस जीवोंसे व्याप्त रहता है। ७. बस जीवोंकी बहुत हिंसा होनेसें वर्जने योग्य : वनस्पतियां. १-२. बीली, बीलां-यह वनस्पतियां में कीडे और क्षुद्र जीवों उत्पन्न होनेके सबबसे सर्वथा वर्जनीय हैं। तब उनका बोल अचार करके वापरना, वो कितना त्रासदायक कर्तव्य है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003639
Book TitleAbhakshya Anantkay Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPranlal Mangalji
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1942
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size8 MB
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