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कुछ सान रख मर्यादामें रहें तो ठीक है। नहिं तो उनके कटु विपाकका स्वाद लेना पडेगा तब उपाय नहि रहेगा.
[जैन जाति में जन्म लिया हुआ कितनेक युवकों इतने । बहुत आगे बढ गये है की-आरोग्य के तत्वों बीना समजे आरोग्य के नामसें जैन खान-पान विधिकी चेष्टा उडाने वाले अज्ञानी पडें है।]
२२ से ३५ तक, बीडी, होका, चीलीम, चुंगी, चीरुट, तमाकु, गांजा, चडस, माजम, अफीम, कसुंबे, भांग, कोकीन, दारु वगैरह व्यसनों अनाचरणीय है, जीव हिंसा और अनर्थ का कारण,और पैसों का दुरुपयोग है। अलावा इन के कोई लाभ नहिं । वो चीज कभी न मीले तो, चैतन्य व्याकुल होता है, और उसे क्षयादि महा रोगों की उत्पत्ति होती है। कभी मरण होने का भी संभव है। उनमें आग और पवन के
और दूसरे त्रस या स्थावर जीवों की हिंसा होती हैं। वास्ते ऐसी केफी पदार्थो का सर्वथा त्याग करना।
[सीगारेटका प्रचारके लीए, होके और चीलीम की नाटकादिमें चेष्टा-करके प्रजासे त्याग करवाने के लीए बीडीयांका वपराश बहुत प्रमाणमें बढ गया है। अब उनके बडेबडे कारखाने तैयार होनेका समय आ चुका है और होते रहे है. बीडीका प्रचार और उनके पर लाइसन्सद्वारा अंकुश, यह सब अवश्य सीगारेटके प्रचारकी प्राथमिक भूमिकाके लीए था और है. इस देशमें सीगारेट के बडेबडे कारखाने निकलने लगे है.]
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