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[३६ स्थंभक दवाओं-बहुधा-झहरीली, केफी, और रासायणिक, औषधिओंका मिश्रणसे होती है, जुठी उश्केरनी
और जुठी उत्तेजनासे भविष्य में नामर्दाई उत्पन्न करके आयुष्यका ह्रास करते है. धत्तुरा, आक, वन झहर कोचला, सोमल, वच्छनाग, गंधक, पारा, वगैरह विषप्रायः औषधोंका उनमें संभव है. वास्ते प्रसिद्धि में आती हुई बहुत जाहिरात से लुभवाके वैसी दवाओं नहीं वापरनी चाहिए। स्त्रीओ के लिये भी गर्भ न रहनेकी वैसीही जाहिरात होती है. वो सब नुकसान कर्ता है. विषप्राय होनेसे अभक्ष्य और आरोग्य बिगाडने वाली है।]
३७ विलायती दवाएं अभक्ष्य है, अच्छी बात तो यह है की-रोगादि कष्टों होते हुए भी न लेना चाहिए । आत्मबल मजबूत होवे तोकया न हो सकता है ? यदि यही आत्मा वैतरणी नदी (नारकीमें ) प्राप्त करता है, और यही आत्मा स्वर्गादि सुखोंका भोक्ता भी होता है. अखीर, यही आत्मा सिद्धि गति जाता है.
कीतनेक उच्छृखल, स्वछंदी, शोखीनों, विलायती दवाके डोझों आनंदसे पीतें है. वो प्रत्यक्ष अनाचरणीय एवं दुर्गतिके सबल कारण है. वैसे मनुष्योंको कभी कोई उनका भलाकेलीए उपदेश करने जावे, तो उनका परिणाम कीतनेक वख्त खेदकारक आता है. नीतिशास्त्रकारोंने फरमाया है, की
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