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अणुओगदाराई
शृंगाटक
२३९
शैल शैव
२४४
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३२७
२३६,३७९
३२७
३२६
३७९
सरपंक्तिका सरसरपंक्तिका सर्ववैधर्म्य सर्वसाधर्म्य सार सार्थवाह सिद्धशिलातलगत सीखलिया सुविमलाए सेनापति स्तूप स्थिर कर लिया स्पर्शना स्यन्दमानिका स्वर स्वापतेय हीनाक्षर और अत्यक्षर दोष रहित होना
श्रुतस्कन्ध श्रेणी श्रेष्ठी श्लोक संघात संत संसारस्थ सत्त्व सत्पदप्ररूपणा सभा अथवा प्रपा समागम समिति समुदय समुद्देश सम्यग्दर्शन सर
१८०
२३६
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होम
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