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________________ ३७६ १७. केसु १८. कहं १६. केचिचरं हवइ कालं । २०. २१. संतर २२. मविरहियं २३. भवा २४ गरिस २५. फासण २६. निरुली ॥२॥ -सेतं उदग्धापनिज्युलिअणुगमे । ७१४. से कि तं सुतकासिनिम्बुतिअणुगमे ? सुत्तफासिय निज्जुत्तिअणुगमे सुत्तं उच्चारेयव्वं अक्खलियं अमिलिये अवस्थामेलियं पडणं परिपुरण पोसं कंठोडविण्य मुवर्क गुरुवायणोवगयं । तओ नज्जिहिति ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं या मोक्लप वा सामाइयपयं वा नोसामाइयपयं वा । तओ तम्मि उच्चारिए समाणे केसिचि भगवंता के अत्याहि गारा अहिगया भवंति, केसिचि य hs अणहिगया भवति, तओ तेसि अहिगयानं अस्वाणं अहिगमण हुयाए पदेणं पदं वण्णहस्सामिगाहा संहिता य पदं चैव पदस्थ पदविग्गहो । चालणा य पसिद्धी य छहं विद्धिलक्खणं ॥ १ ॥ से तं सुत्तफासिय निज्जुत्तिअणुगमे । से तं निज्जुत्तिअणुगमे । से तं अणुगमे ।। नयाणुओगद्वार-पवं ७१५. से किं तं नए ? सत्त मूलनया पण्णत्ता, तं जहा- नेगमे संगहे ववहारे उज्जुसुए सद्दे समभिरूढे एवंभूए । तत्थ -- गाहानेगेहि माहि मिणइ ति नेगमस्स य मिती सेसाणं पि नयाणं, लक्खणमिणमो सुणह वोच्छे ||१|| ॥१॥ Jain Education International १७. केषु १८. कथं १९. कियच्चिरं भवति कालम् । २०. कति] २१.२२. सान्तरमविरहितं, २३,२४. भवाकषौं २५. स्पर्शनं २६. निरुक्तिः ॥ २॥ स एष उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगमः । अय कि सूपकनिर्मुय ७१४. वह सूत्रस्थतिक नियुक्ति अनुगम क्या है? नुगम: ? सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम: - सूत्रम उच्चारयितव्यम् अस्खलितम् अमीलितम् अव्ययातिं प्रतिपूर्ण प्रतिपुर्णपोष कण्ठौष्ठवप्रयुक्तं गुरुवाचनोपगतम् । ततो ज्ञास्यते स्वसमयपदं वा परसमयपदं वा बन्धपदं वा मोक्षपदं वा सामायिकपदं वा नोसामाधिकपर्व वा । ततस्तस्मिन्नुप्रचारिते सति केषाचित् भगवतां केचिद अर्थाधिकाराः अधिगताः भवन्ति, केषाञ्चिन्च केचिद् अनधिगताः भवन्ति, ततः तेषाम् अनधिगतानामर्थानाम् अधिगमनार्थाय पदेन पदं वर्णयिष्यामि - स्पतिक नियुक्ति अनुगम अस्खलित अन्य वर्णों से अमिश्रित अन्य ग्रंथों के वाक्यों से अमिश्रित प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ और होठ से निकला हुआ, गुरु की वाचना से प्राप्त सूत्र का उच्चारण करना चाहिए। इससे स्वसमय पद, परसमय पद, वन्ध पद, मोक्ष पद, सामायिक पद और नोसामायिक पद जाना जाएगा । इसके बाद सूत्र का उच्चारण करने पर कुछ साधुओं को कई अधिकार ज्ञात हो जाते हैं और कुछ साधुओं को वे ज्ञात नहीं होते, इसलिए उनके अज्ञात अर्थों को ज्ञात कराने के लिए प्रत्येक पद की व्याख्या करूंगा गाथा संहिता च पदं चैव, पदार्थ पदविग्रहः । चालना च प्रसिद्धिश्च, विद्विलक्षणम् ॥ स एवं पशिक नियुक्त्यनुमः । स एवं निर्माययुगमः । स एष अनुगमः ॥ नयानुयोगद्वार पदम् अथ कि स नयः ? सप्त मूलनयाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा नैगम: सङ्ग्रहः व्यवहारः ऋजुसूत्रः शब्दः समभिरूढः एवम्भूतः । तत्र - गाथा -- निः मिनोतीति नैगमस्य निरुक्तिः । शेषाणामपि नयानां, लक्षणमिदं शृणुत वक्ष्ये ॥१॥ अणुओगदाराई नियुक्ति अनुगम जाना जाता है। यह उपोदपात निर्मुक्ति अनुगम है। For Private & Personal Use Only गाथा १. संहिता, पद, पदार्थ, पदविग्रह, चालना, और प्रसिद्धि - व्याख्या के ये छह लक्षण हैं । वह सूत्रस्परिक निर्युक्ति अनुगम है। वह निर्युक्ति अनुगम है । वह अनुगम है । नव अनुयोगद्वार पद ७१५. वह नय क्या है ? मूल नय सात प्रज्ञप्त हैं, जैसे - नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत । गाथा १. नैकैः मानैः मिमीते इति नैगमः- जो अनेक प्रमाणों से वस्तु का ज्ञान करता है वह निगम है । यह नेगम पद की निरुक्ति है । शेष नयों के लक्षण भी बताऊंगा । उन्हें सुनी। www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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