________________
तेरहवां प्रकरण : सूत्र ६५१-६६१
सावएज्जरस आए से तं अचित्ते ॥
६५६. से किं तं मीसए ? मीसएदासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरिया उज्जाकियाणं आए। से तं मीसए । से तं लोइए ॥
६५७. से किं तं कुप्पावयणिए ? कुप्पातिविहे पण्णत्ते, तं जहासचिते अचिते मीसए ||
६५८. से कि तं सचित्ते ? सचित्त तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- दुपयाणं चप्पयाणं अपयाणं । दुपधाणं दासाणं दासीणं, चउप्पयाणं आसाणं कृत्बीण, अपयाणं अंबाणं अंबाडगाणं आए । से तं सचित्ते ॥
६५६. से कि त अविले ? अविसुवण्ण-रयय-मणि- मोत्तिय संखसिलवाल रत्तरयणानं संत-सारसावएज्जस्स आए। से तं अचित्ते ॥
६६०. से कि तं मोसए ? मोसए
दासाणं दासीणं आसाणं हत्थीणं समाभरिया उज्जालंकियाणं आए । से तंमीसए । सेतं कुप्पावयणिए ।
६६१. से कि तं लोगुत्तरिए ? लोगुत्तरिए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा -- सचिले अपिले मोसए ।
Jain Education International
स्वापतेयस्य आयः । स एष अचित्तः ।
अथ किं स मिश्रक: ? मिश्रक:दासानां दासीनाम् अश्वानां हस्तिनां समामृतातो द्यालंकृतानाम् यः स एष मिश्रकः । स एष लौकिकः ।
अथ किं स कुप्रावचनिक: ? कृप्रावयनिस्त्रिविध: प्रज्ञप्तः, तद्यथा सचित्तः अचित्तः मिश्रकः ।
अथ किस सचित्तः ? सचित्तस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा द्विपदानां चतुष्पदानाम् अपदानाम्। द्विपदानाम् - दासानां दासीनाम्, चतुष्पदानाम् अश्वानां हस्तिनाम् अपदानाम् - आम्राणाम् आम्रतिकानाम् आय: । स एष सचित्तः ।
अथ किस अचित्त ? अचित्तः सुवर्ण रजत-मणि-मोतिक शिना प्रबाल-समान सत्-सार-स्वापतेयस्य आय: । स एष अचित्तः ।
.
अथ कि स मिश्रक: ? मिश्रक:वासानां दासीनाम् अश्वानां हस्तिनां समानृतातोयाकृतानाम् आया स एष मिश्रकः । स एष कुप्रावचनिकः ।
अथ किं स लोकोत्तरिक: ? लोकोत्तरिकस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः तद्यथा— सचित्तः अचित्तः मिश्रकः ।
For Private & Personal Use Only
३६५
तथा श्रेष्ठ, सुगन्धित द्रव्य एवं दान भोग आदि के लिए स्वापतेय (स्वाधीनता पूर्वक व्यय किए जाने वाले धन ) की आय है । "
६५६. वह मिश्र लौकिक द्रव्य आय क्या है ?
मिश्र लौकिक द्रव्य आय -आभरण और आतोद्य [पटह, झल्लरी आदि ] से अलंकृत दास, दासी, अश्व, हाथी आदि की आय । वह मिश्र लौकिक द्रव्य आय है । वह लौकिक द्रव्य आय है ।
६५७. वह कुप्रावचनिक द्रव्य आय क्या है ?
कुप्रावचनिक द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सचित्त, अचित्त और मिश्र ।
६५८. वह सचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य आय क्या है ? सचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- द्विपद, चतुष्पद और
अपद ।
द्विपद दास, दासी की आय । चतुष्पद अश्व, हाथी की आय । अपद- आम, आम्रातक [ आमेड़ा ] की आय। वह सचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य आय है ।
६५९. वह अचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य आय क्या है ?
अति प्राचनिक द्रव्य आय सुवर्ण रजत, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न तथा श्रेष्ठ, सुगन्धित द्रव्य एवं दान भोग आदि के लिए स्वापतेय (स्वाधीनता पूर्वक व्यय किए जाने वाले धन ) की आय । वह अचित्त कुप्रावचनिक द्रव्य आय है ।
६६०. वह मिश्र कुप्रावचनिक द्रव्य आय क्या है ? मिश्र कुप्रावचनिक द्रव्य आय --- आभरण और आतोय [पट, तरी आदि से अकृतदासदासी अश्व-हाथी आदि की आय । वह मिश्र कुप्रावचनिक द्रव्य आय है । वह कुप्रावनिक द्रव्य आय है ।
६६१. वह लोकोत्तरिक द्रव्य आय क्या है ?
लोकोत्तरिक द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे – सचित्त, अचित्त और मिश्र
1
www.jainelibrary.org