SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ यगय प चावयवत्तदेहं जीवयात जीवविप्रहीणं विपन सेज्जायं वा संचारमयं वा संस्कारगत वा नियीवा निसोहियागयं वा सिद्धसिला धिकागतं वा सिद्धशिलातलगतं वा सलग वा पासिता णं कोई दृष्ट्वा कोऽपि वदेत् अही अने बएन्जा अहो णं इमेणं सरीर- शरीरसमुरायेण निविष्टेन भावेन समुस्सएणं जिणदिणं भावेणं आयः इति पदम् आख्यातं प्रज्ञापितं आए ति पयं आपवियं पण्णविप्ररूपितं दश निशितम् उपदर्श तम् या का ? अर्थ मधुकुम्भः आसीत्, अयं घृतकुम्भः आसीत् स एव नगरी-द्रयाः । परुवियं दंतियं नियंखियं उवदंसियं जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे आसी, अयं वकुंभे आसी से तं जाणगसरीरदव्वाए | 1 ६५१. से किं तं भवियसरोरदव्वाए ? भवियसरीरदव्वाए जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिण दिट्ठेणं भावेणं आए ति प सेय काले सिविखस्स, न ताव सिक्ख जहा को दिट्ठतो ? अयं महुकुंभे भविस्स, अयं चवकुंभे भविस्स से तं भवियसरीरवस्याए || ६५२. से कि तं जाणगसरीर भविय सरोरवतिरितं दबाए ? जाणग सरीर भवियसरीर वतिरित्ते दव्वाए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा लोइए कुप्पावयणिए लोगुत्तरिए ॥ ६५३. से किं तं लोइए ? लोइए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - सचित्ते अचित्ते मी ॥ ६५४. से किं तं सचित्ते ? सचित्ते तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-दुपयाणं चप्पा अपया दुपधाणं दासाणं दासीणं चध्वयाणं आसाणं हवीणं, अपयाणं अंवाणं अंबाडगाणं आए से तं सचिते ॥ ६५५. से कि तं अचित्ते ? अविलेसुवण रयय-मणि-मोतिय-संख सिलवालसरपणाणं संत-सार Jain Education International अथ कि स भव्यशरीरद्रव्यायः ? भव्यशरीरद्रव्यायः- यः जीवो योनिजन्मनिष्क्रान्तः अनेन चैव आदत्तकेन शरीरसमुच्छ्रयेण जिनदिष्टेन भावेन आयः इति पदम् एष्यत्काले शिक्षितेन तावत् शिक्षा कः वृष्टान्तः ? अयं मधुकुम्भः भविष्यति, अयं घृतकुम्भ: भविष्यति । स एष भव्यशरीरद्रव्यायः । अथ कि स ज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यायः ? ज्ञशरीरभव्यशरीर-व्यक्तिरिक्तो द्रव्यायस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - लौकिक: प्राचनिकः सोकोतरिक: । अथ किं स लौकिकः ? लौकिकस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-- सचित्तः अचित्तः मिश्रकः । अथ कि स सचित्तः ? सचित्तस्त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - द्विपदानां चतुष्पदानाम् अपदानाम् । द्विपदानाम् - दासानां दासीनाम्, चतुष्पदानाम्नां हस्तिनाम् अपक्षनाम् आम्राणाम्, आम्रातकानाम् आय: । स एष सचित्तः । - अथ किं स अचित्तः ? अचित्त:सुवर्ण रजत-मणि मौक्तिक शङ्ख-शिलाप्रवाल- रक्तरत्नानां For Private & Personal Use Only अणुओगदाराई अचेतन प्राण से च्युत, किसी निमित्त से प्राण च्युत किया हुआ, उपचय रहित और जीव विप्रमुक्त है उसे शय्या बिझने मानभूमि या सिद्धशिलातल पर देखकर कोई कहेआश्चर्य है इस पौद्गलिक शरीर ने जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार आय इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया है। जैसे कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा इसका दृष्टान्त यह है ] यह मधुघट था, यह घृतघट था। वह ज्ञशरीर द्रव्य आय है । ६५१. वह भव्यशरीर द्रव्य आय क्या है ? भव्यशरीर द्रव्य आय - गर्भ की पूर्णावधि से निकला हुआ जीव इस प्राप्त पौद्गलिक शरीर से आय इस पद को जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है तब तक वह भव्यशरीर द्रव्य आय है। जैसे कोई दृष्टान्त है ? [आचार्य ने कहा - इसका दृष्टान्त यह है ] यह मधुपट होगा, यह पृतपट होगा। वह भव्यशरीर द्रव्य आय है । ६५२. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आय क्या है ? ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे लौकिक, कुप्रावचनिक और लोकोत्तरिक । ६५३. वह लौकिक द्रव्य आय क्या है ? लौकिक द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सचित्त, अचित्त और मिश्र । ६५४. वह सचित्त लौकिक द्रव्य आय क्या है ? सचित्त लौकिक द्रव्य आय के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे द्विपद चतुष्पद और अपद । द्विपद- दास, दासी की आय । चतुष्पद - अश्व, हाथी की आय । - आम और आम्रातक [ आमेड़ा ] की आय । वह सचित्त लौकिक द्रव्य आय है । अपद ६५५ वह अचित्त लौकिक द्रव्य आय क्या है ? अचित्त लौकिक द्रव्य आय- सुवर्ण, रजत, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy