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________________ ३६२ ६४०. से कि तं जाणगसरीर भविय सरीर-वतिरित्ते दवणे ? जाणगसरीर भविय सरीर वतिरित्ते दव्वज्भोणे - सव्यागाससेढी । से तं जाणगसरीर-भवियसरीर वतिरित्ते दव्वज्भीणे । नोआगमओ दव्बरोणे दव्वीणे ॥ से तं से तं ६४१. से कि तं भावज्भोणे ? भावउणे दुहे पण्णले तं जहा आगमओ य नोआगमओ य ॥ - ६४२. से कि तं आगमओ भावज्भोणे? आगमओ भावज्झीणे-जाणए उबले । से तं आगमओ भावकीर्ण || ६४३. से कि तं नोआगमओ भावकोणे ? नोआगमओ भावम्भोणे गाहा जह दीवा दोवसयं, पप्पए सो य दिप्पए दीयो । दीवसमा आयरिया, दिप्पंति परं च दीवेंति ||१|| से तं नोआगमओ भावकीर्ण। से तं भावक्झोणे से तं अवझीणे ।। ६४४. से कि तं आए ? आए चउण्यिहे पण्णत्ते, तं जहानामाए उवणाए दबाए भाषाए । ६४५. नाम-दुवणाओ गयाओ ॥ ६४६. से किसे दबाए ? दवाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - आगमओ य नोआगमओ य ॥ Jain Education International ६४७ से कि तं आगमओ दबाए ? आगममो दबाए जस्स णं आए त्ति पदं सिलिये ठियं जयं म परिजियं नामसमं घोससमं अथ किं तद् ज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तं द्रव्याक्षीणम् ? ज्ञशरीरभव्यशरीर व्यतिरिक्तं द्रव्याक्षीणम् - सर्वाकाशश्रेणिः । तदेतद् ज्ञशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तं द्रव्याक्षीणम् । तदेतद् नोआगमतो द्रव्याक्षीणम् । याक्षोणम् । तदेत अब कि तद् भावाशीणम् ? भावाक्षीणं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा आगमतश्च नोआगमतश्च । अथ कि तद् आगमतो भावाक्षीणम ? आगमतो भावाक्षीणम् ज्ञः उपयुक्तः । तदेतद् आगमतो मायाक्षीणम् । अथ कि तद् नोआगमतो भावाक्षीणम् ? नोभागमतो भावाशीणम् गाथा या दीपा प्रदीप्यते स च दीप्यते दीपः । दीपसमा आचार्या:, दीप्यन्ते परञ्च दीपयन्ति ॥ तदेतद् नोआगमतो भावाक्षीणम् । तदेतद् भावाक्षीणम् । अक्षीणम् । तदेतद् अथ किस आय ? आयश्चतुविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा नामाय: स्थापनाय द्रव्यायः भावाय: । नाम स्थापने गते । अथ कि स द्रव्यायः ? द्रव्यायः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा आगमतश्च नोआगमतश्च । अथ कि स आगमतो द्रव्यायः ? आगमतो द्रव्याय: यस्य आयः इति पदं शिक्षितं स्थितं चितं मितं परिचितं नामसमं घोषसमम् अहीनाक्षरम् For Private & Personal Use Only अणुओगदारा ६४०. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण क्या है ? ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण सर्व लोक- अलोक रूप सम्पूर्ण आकाश की श्रेणी अक्षीण होती है। वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अक्षीण है । वह नोआगमतः द्रव्य अक्षीण है । वह द्रव्य अक्षीण है। * ६४१. वह भाव अक्षीण क्या है ? भाव अक्षीण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआगमतः और नोआगमतः । ६४२. वह आगमतः भाव अक्षीण क्या है ? आगमतः भाव अक्षीण-जो जानता है और उसके अर्थ में उपयुक्त है। वह आगमतः भाव अक्षीण है ।" ६४३. वह नोआगमतः भाव अक्षीण क्या है ? नोआगमतः भाव अक्षीणगाथा जैसे दीप से सैंकड़ों दीप प्रदीप्त होते हैं फिर भी वह स्वयं दीप्त रहता है, बुझ नहीं जाता । दीप की भांति आचार्य दूसरों को प्रदीप्त करते हैं फिर भी स्वयं प्रदीप्त रहते हैं। वह नोआगमतः भाव अक्षीण है। वह भाव अक्षीण है । वह अक्षीण हैं । ६४४. वह आय क्या है ? आय के चार प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—नाम आय, स्थापना आय, द्रव्य आय और भाव आय । ६४५. नाम स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं। [देखें सू. ९-११] । ६४६. वह द्रव्य आय क्या है ? द्रव्य आय के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआगमतः और नोआगमतः । ६४७. वह आगमतः द्रव्य आय क्या है ? आगमतः द्रव्य आय- जिसने आय यह पद सीख लिया, स्थिर कर लिया, चित कर लिया, मित कर लिया, परिचित कर लिया, www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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