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________________ बारहवां प्रकरण : सूत्र ६१०-६१४ तदुभयसमोयारे । सव्वदन्वा वि णं आयसमोयारेणं आयभावे समोयरंति, परसमोपारेण जहा कुंडे बदराणि तदुभयसमोयारेणं जहा घरे यंत्रो आयभावे जहा घडे गीवा आयभावे य ॥ य, ६१४. अहवा जाणवसरीर-मवियसरीरवतिरिते दण्वसमोयारे दुविहे पण्णले, तं जहा आवसमोयारे य तदुभयसमोवारे य । चउसट्टिया आयसमोवारेणं आयभावे समोपरद, तदुभयसमोयारेणं बसी सियाए समोयरइ आयभावे य । बसोसिया आयसमोयारेणं आव भावे समोर, तदुभयसमोयारेणं सोलसियाए समोयरइ आयभावे य। सोलसिया आयसमोवारेणं आयभावे समोवरह, तदुभयसमो यारेणं अट्ठभाइयाए समोवरइ आयभावे य अट्टमाइया आय समोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं चउभाइयाए समोयरइ आयभावे य । चउभाइया आयसमोयारेणं आयभावे समोयरइ, तदुभयसमोयारेणं अद्धमाणीए समोवर आयभावे य अद्धमाणी आवसमोवारेणं आयभावे समोवर, तदुभयसमोयारेणं माणीए समोयरइ आयभावे य । से तं जाणगसरीर-मवियसरीर-यतिरिले दम्ब समोयारे से तं नोआग1 मओ दव्वसमोयारे । से तं दव्वसमोयारे ॥ Jain Education International समवतार: । सर्वद्रव्याणि अपि आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरन्ति, परसभयता रेण यथा कुण्डे बदराणि, तदुभयसमवतारेण यथा गृहे स्वम्मः आत्मभावे च यथा घटे ग्रीवा आत्मभावे च । अथवा ज्ञशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारः द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा आत्मसमवतारश्च तदुभयसमवतारश्च चतुष्टिका आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमवतारे द्वात्रिशिकायां सम वतरति आत्मभावे च । द्वात्रिंशिका आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमवतारेण षोडशिकाय समवतरति आत्मभावे च । षोडशिका आत्मसमचतारेण आत्मभावे समवतरति तदुभयसमवतारेण अष्टभागिकायां समवतरति आत्मभावे च । अष्टभागिका आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, तदुभयसमवतारेण चतुर्भागिकायां समवतरति आत्मभावे च । चतुर्भागिका आत्मसमवतारेण आत्मभावे समवतरति, अर्धमाण्यां तदुभयसमवतारेण समवतरति आत्मभावे च । अर्द्धमाणी आत्मसमवतारेच आत्मभावे समयतरति तदुभयसमचतारेण माध्या समवतरति आत्मभावे च स एष शशरीर भव्य शरीर-व्यतिरिक्तो प्राथसमवतारः । स एष नोआगमतो द्रव्यसमवतार: । स एष द्रव्यसमवतारः । For Private & Personal Use Only ३४१ समवतार । सब द्रव्य आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित होते हैं । परसमवतार के द्वारा परभाव में समवतरित होते हैं, जैसे कुण्ड में बैर । तदुभयसमवतार के द्वारा दोनों में समवतरित होते हैं, जैसे- खंभा घर में और आत्म भाव में समवतरित है। जैसे- ग्रीवा घट में और आत्मभाव में समवतरित है। ६१४. अथवा ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआत्मसमवतार और तदुभयसमवतार । चतुषष्टिका आत्म समवतार के द्वारा आत्म भाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा द्वात्रिंशिका और आत्मभाव में समवतरित है । द्वात्रिंशिका आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है के द्वारा षोडशिका समवतरित है । वह तदुभयसमवतार और आत्मभाव में षोडशिका आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा अष्टभागिका और आत्मभाव में समयतरित है। अष्टभागिका आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा चतुर्भागिका और आत्मभाव में समवतरित है । चतुर्भागका आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा अर्धभाणी और आत्मभाव में समवतरित है। अर्धमाणी आत्मसमवतार के द्वारा आत्मभाव में समवतरित है। वह तदुभयसमवतार के द्वारा माणी और आत्मभाव में समबतरित है । वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार है । वह नोआगमतः द्रव्य समवतार है । वह द्रव्य समवतार है।* www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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