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________________ ३४० , वत्तव्वया सा ससमयं पविट्ठा । जासा परसमयवत्तव्वया सा परसमयं पविट्ठा। तम्हा दुबिहा वत्तव्वया, नत्थि तिविहा वत्तव्वया । तिब्णि सहनवा एवं ससमयबसवयं इच्छति नत्थि परसमयबत्तव्वया । कम्हा ? जम्हा परसमए अणट्ठे अहेऊ असम्भावे अकिरिया उम्म अणुवएसे मिच्छादंसणमिति कट्टु, तम्हा सव्वा ससमवत्तव्वया, नत्थि परसमयवत्तव्वया, नत्थि ससमय। से तं परसमयवतव्वया वत्तव्वया ॥ उववकमाणुओगदारे अत्याहियार पर्व ६१०. से कि तं अस्वाहिवारे ? अत्या हिगारे जो जस्स अञ्झयणस्स अत्याहिगारो, तं जहागाहा १. सावज्जजोगविरई २. उक्कित्तण ३. गुणवओ य पश्विती। ४. खलियरस निदना ५. वर्णतिमिच्छ ६. गुणधारणा चैव ॥१॥ - सेतं अत्यहिगारे | उवक माणुओगदारे समोवार पद वक्तव्यता सा स्वसमयं प्रविष्टा । या असौ परसमयवक्तव्यता सा परसमयं प्रविष्टा । तस्माद् द्विविधा वक्तव्यता, नास्ति त्रिविधा वक्तव्यता । श्रयः शब्दनया: एकां स्वसमयवक्तव्यतामिच्छन्ति, नास्ति परसमयवक्तव्यता । कस्मात् ? यस्मात् परसमयः अनर्थः हेतुः असद्भावः अकिया उन्मार्गः अनुपदेश: मिथ्यादर्शनमिति कृत्वा, तस्मात् सर्वा स्वसमयवक्तव्यता, नास्ति परसमयवक्तव्यता, नास्ति स्वसमय-परसमयवक्तव्यता । सा एषा वक्तव्यता ॥ उपक्रमानुयोगद्वारे अर्थाधिकार पदम अथ किस अर्थाधिकारः ? अर्थाधिकारः -- यः यस्य अध्ययनस्य अर्थाधिकार:, तद्यथा गाथा Jain Education International १. सावद्ययोगविरतिः २. उत्कीर्तनं ३. गुणवतश्च प्रतिपत्तिः । ४. स्खलितस्य निन्दनं ५. व्रणचिकित्सा ६. गुणधारणा चैव ॥ gan - स एष अर्थाधिकारः । उपक्रमानुयोगद्वारे समवतारपदम् अथ कि स समवतारः ? समयतारः षड्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ६११. से कि त समोयारे ? समोयारे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - १. नामसमोवारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४ खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमो- क्षेत्रसमवतारः ५. कालसमवतारः यारे ॥ १. नामसमवतारः २. स्थापनासमवतारः ३. द्रव्यसमवतारः ४. ६. भावसमवतार: । ६१२. नामदुवणाओ गयाओ जाय। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे ॥ ६१३. से किं तं जाणगसरीर - भवियसरीर वतिरिते दध्वसमोयारे ? जाणगसरीर-मवियसरीरवतिरिते दव्वसमोयारे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- आयसमोयारे परसमोयारे समवतार नामस्थापने गते यावत् । स एष भव्यशरीरद्रव्यसमवतारः । अथ कि स ज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारः । ज्ञशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- आत्मपरसमवतारः तदुभय For Private & Personal Use Only अणुओगदाराई स्वसमय में प्रविष्ट है और जो परसमय वक्तव्यता है वह परसमय में प्रविष्ट है इसलिए वक्तव्यता दो प्रकार की है, तीन प्रकार की नहीं । तीन शब्द नयों को एक स्वसमय वक्तव्यता इष्ट है । परसमय वक्तव्यता इष्ट नहीं है । किसलिए ? 1 इसलिए कि परसमय अन्य हेतु प सद्भावशून्य किया शून्य उन्मार्ग अनुपदेश और मिथ्या दर्शन है। इसलिए स्वसमय वक्तव्यता है, परसमय वक्तव्यता नहीं है और स्वसमय परसमय वक्तव्यता भी नहीं है। वह वक्तव्यता है ।" उपक्रम अनुयोगद्वार - अर्थाधिकार पद ६१०. वह अर्थाधिकार क्या है ? अर्थाधिकार - जिस अध्ययन का जो [ प्रतिपाद्य विषय है वह उसका ] अर्थाधिकार है, जैसे- गाथा १. सावययोग विरति २. उत्कीर्तन ३. गुणवान की प्रतिपत्ति, ४. स्खलित की निन्दा, ५. व्रण चिकित्सा, ६. गुण धारणा । वह अर्थाधिकार है ।" उपक्रम अनुयोगद्वार - समवतार-पद ६११. वह समवतार क्या है ? समवतार के छः प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेनाम समवतार, स्थापना समवतार, द्रव्य समवतार, क्षेत्र समवतार, काल समवतार और भाव समवतार । ६१२. नाम, स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं [ देख सू. ९- १७ ] । वह भव्यशरीर द्रव्य समवतार है । ६१३. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार क्या है ? ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआत्मसमवतार, परसमवतार और तदुभय www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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