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वत्तव्वया सा ससमयं पविट्ठा । जासा परसमयवत्तव्वया सा परसमयं पविट्ठा। तम्हा दुबिहा वत्तव्वया, नत्थि तिविहा वत्तव्वया । तिब्णि सहनवा एवं ससमयबसवयं इच्छति नत्थि परसमयबत्तव्वया । कम्हा ? जम्हा परसमए अणट्ठे अहेऊ असम्भावे अकिरिया उम्म अणुवएसे मिच्छादंसणमिति कट्टु, तम्हा सव्वा ससमवत्तव्वया, नत्थि परसमयवत्तव्वया, नत्थि ससमय। से तं
परसमयवतव्वया वत्तव्वया ॥
उववकमाणुओगदारे अत्याहियार पर्व
६१०. से कि तं अस्वाहिवारे ? अत्या हिगारे जो जस्स अञ्झयणस्स अत्याहिगारो, तं जहागाहा
१. सावज्जजोगविरई २. उक्कित्तण ३. गुणवओ य पश्विती।
४. खलियरस निदना ५. वर्णतिमिच्छ
६. गुणधारणा चैव ॥१॥
- सेतं अत्यहिगारे |
उवक माणुओगदारे समोवार पद
वक्तव्यता सा स्वसमयं प्रविष्टा । या असौ परसमयवक्तव्यता सा परसमयं प्रविष्टा । तस्माद् द्विविधा वक्तव्यता, नास्ति त्रिविधा वक्तव्यता । श्रयः शब्दनया: एकां स्वसमयवक्तव्यतामिच्छन्ति, नास्ति परसमयवक्तव्यता । कस्मात् ? यस्मात् परसमयः अनर्थः हेतुः असद्भावः अकिया उन्मार्गः अनुपदेश: मिथ्यादर्शनमिति कृत्वा, तस्मात् सर्वा स्वसमयवक्तव्यता, नास्ति परसमयवक्तव्यता, नास्ति स्वसमय-परसमयवक्तव्यता । सा एषा वक्तव्यता ॥
उपक्रमानुयोगद्वारे अर्थाधिकार
पदम
अथ किस अर्थाधिकारः ? अर्थाधिकारः -- यः यस्य अध्ययनस्य अर्थाधिकार:, तद्यथा
गाथा
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१. सावद्ययोगविरतिः २. उत्कीर्तनं ३. गुणवतश्च प्रतिपत्तिः ।
४. स्खलितस्य निन्दनं ५. व्रणचिकित्सा ६. गुणधारणा चैव ॥ gan - स एष अर्थाधिकारः ।
उपक्रमानुयोगद्वारे समवतारपदम्
अथ कि स समवतारः ? समयतारः षड्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-
६११. से कि त समोयारे ? समोयारे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - १. नामसमोवारे २. ठवणसमोयारे ३. दव्वसमोयारे ४ खेत्तसमोयारे ५. कालसमोयारे ६. भावसमो- क्षेत्रसमवतारः ५. कालसमवतारः यारे ॥
१. नामसमवतारः २. स्थापनासमवतारः ३. द्रव्यसमवतारः ४.
६. भावसमवतार: ।
६१२. नामदुवणाओ गयाओ जाय। से तं भवियसरीरदव्वसमोयारे ॥ ६१३. से किं तं जाणगसरीर - भवियसरीर वतिरिते दध्वसमोयारे ? जाणगसरीर-मवियसरीरवतिरिते दव्वसमोयारे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- आयसमोयारे परसमोयारे समवतार
नामस्थापने गते यावत् । स एष भव्यशरीरद्रव्यसमवतारः ।
अथ कि स ज्ञशरीर भव्यशरीरव्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारः । ज्ञशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तो द्रव्यसमवतारः त्रिविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- आत्मपरसमवतारः तदुभय
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अणुओगदाराई
स्वसमय में प्रविष्ट है और जो परसमय वक्तव्यता है वह परसमय में प्रविष्ट है इसलिए वक्तव्यता दो प्रकार की है, तीन प्रकार की नहीं ।
तीन शब्द नयों को एक स्वसमय वक्तव्यता इष्ट है । परसमय वक्तव्यता इष्ट नहीं है । किसलिए ?
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इसलिए कि परसमय अन्य हेतु प सद्भावशून्य किया शून्य उन्मार्ग अनुपदेश और मिथ्या दर्शन है। इसलिए स्वसमय वक्तव्यता है, परसमय वक्तव्यता नहीं है और स्वसमय परसमय वक्तव्यता भी नहीं है। वह वक्तव्यता है ।"
उपक्रम अनुयोगद्वार - अर्थाधिकार पद
६१०. वह अर्थाधिकार क्या है ?
अर्थाधिकार - जिस अध्ययन का जो [ प्रतिपाद्य विषय है वह उसका ] अर्थाधिकार है, जैसे-
गाथा
१. सावययोग विरति २. उत्कीर्तन ३. गुणवान की प्रतिपत्ति,
४. स्खलित की निन्दा, ५. व्रण चिकित्सा, ६. गुण धारणा । वह अर्थाधिकार है ।"
उपक्रम अनुयोगद्वार - समवतार-पद
६११. वह समवतार क्या है ?
समवतार के छः प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेनाम समवतार, स्थापना समवतार, द्रव्य समवतार, क्षेत्र समवतार, काल समवतार और भाव समवतार ।
६१२. नाम, स्थापना पूर्ववत् ज्ञातव्य हैं [ देख सू. ९- १७ ] । वह भव्यशरीर द्रव्य समवतार है । ६१३. वह ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार क्या है ?
ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य समवतार के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसेआत्मसमवतार, परसमवतार और तदुभय
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