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अणुओगदाराई
इस प्रकार उत्पन्न राशि को पुनः तीन बार वगित-संगित करने से उत्कष्ट अनन्त-अनन्त का मान होता है।' इस प्रकार प्राप्त मान केवलज्ञान-प्रमाण होता है।
३. तीसरी परिभाषा में और दूसरी परिभाषा में केवल इतना ही अन्तर है कि यहां उत्कृष्ट अनन्त-अनन्त का मान प्राप्त करने में शलाकात्रय निष्ठापन विधि से वगित-संवगित किया जाता है।
४. चौथी परिभाषा और तीसरी परिभाषा में केवल इतना ही अन्तर है कि तीसरी परिभाषा से उत्कृष्ट प्राप्त राशि में पुनः केवलज्ञान तथा केवलदर्शन के अनन्त बहुभाग को मिलाया जाता है।
___ इस प्रकार उत्कृष्ट अनन्त-अनन्त की परिभाषा में मतभेद होते हुए भी सभी परम्पराओं का इस विषय में तो मतैक्य है ही कि उत्कृष्ट अनन्त-अनन्त संख्या के मान का कोई पदार्थ नहीं है। जहां अनन्तानन्त का उल्लेख है वहां पर मध्यम अनन्त-अनन्त का ग्रहण ही अभीष्ट हैं।'
२. तिप.४१३१३ ।
१. त्रिसा. गा. ४९-५१ । ३. विप्र.पृ. २८८-२९३ ।
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