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ग्यारहवां प्रकरण : सूत्र ५४६-५५४
तं जहा-चक्खुदंसणगुणप्पमाणे तद्यथा-चक्षुर्दशनगुणप्रमाणम् अचक्षुअचक्खुदंसणगणप्पमाणे ओहि- दर्शनगुणप्रमाणम् अवधिदर्शनगुणदसणगुणप्पमाणे केवलदसणगुणप्प- प्रमाणं केवलदर्शनगुणप्रमाणम् । माणे । चक्खुदंसणं चक्खुदंसणिस्स चक्षुर्दर्शनं चक्षुर्वर्शनिनः घट-पट-कटघड-पड-कड-रहादिएसु दम्वेसु । रथादिकेषु द्रव्येषु । अचक्षुर्दर्शनम् अचक्खुबंसणं अचक्खुदंसणिस्स अचक्षदर्शनिनः आत्मभावे । अवधिदर्शआयभावे। ओहिदसणं ओहिस- नम् अवधिदर्शनिनः सर्वरूपिद्रव्येषु न णिस्स सव्वरूविदव्वेहिं न पुण पुनः सर्वपर्यवेषु । केवलदर्शनं केवलसव्वपज्जवेहि । केवलदंसणं केवल- दर्शनिनः सर्वद्रव्येषु सर्वपर्यवेषु च । दंसणिस्स सव्वदध्वेहि सव्वपज्ज- तदेतद् दर्शनगुणप्रमाणम् । वेहि य । से तं दंसणगुणप्पमाणे ॥
जैसे-चक्षुदर्शनगुण प्रमाण, अचक्षुदर्शनगुण प्रमाण अवधिदर्शनगुण प्रमाण और केवलदर्शन गुण प्रमाण। चक्षुदर्शनी के घट, पट, कट [चटाई], रथ आदि द्रव्यों में चक्षुदर्शन होता है। ___ अचक्षुदर्शनी के आत्म-भाव में-ज्ञाता के साथ ज्ञेय का संश्लेष होने पर अचक्षुदर्शन होता है। ___ अवधिदर्शनी के सब रूपी द्रव्यों में अवधिदर्शन होता है पर सब पर्यायों में नहीं होता।
केवलदर्शनी के सब द्रव्य और सब पर्यायों में केवलदर्शन होता है। वह दर्शन गुण प्रमाण
है।
अश
५५३. वह चारित्रगुण प्रमाण क्या हैं ?
चारित्रगुण प्रमाण के पांच प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे सामायिक चारित्र गुण प्रमाण, छेदोपस्थापनीय चारित्र गुण प्रमाण, परिहारविशुद्धिक चारित्र गुण प्रमाण, सूक्ष्मसंपराय चारित्र गुण प्रमाण और यथाख्यात चारित्र गुण प्रमाण ।
सामायिक चारित्र गुण प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -इत्वरिक और यावत्कथिक ।
५५३. से किं तं चरित्तगणप्पमाणे? अथ किं तत् चरित्रगुणप्रमाणम् ?
चरित्तगुणप्पमाणे पंचविहे पण्णत्ते, चरित्रगुणप्रमाण पञ्चविधं प्रज्ञप्तं, तं जहा सामाइयचरित्तगुणप्प
तद्यथा- सामायिकचरित्रगुणप्रमाणं माणे छेदोवढावणियचरित्तगुणप्प
छेदोपस्थापनीयचरित्रगुणप्रमाणं परिमाणे परिहारविसुद्धियचरित्तगुण- हारविशुद्धिकचरित्रगुणप्रमाणं सूक्ष्मप्पमाणे सुहमसंपरायचरित्तगुणप्प
सम्परायचरित्रगुणप्रमाणं यथाख्यातमाणे अहक्खायचरित्तगणप्पमाण। चरित्रगुणप्रमाणम् । सामाइयचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे सामायिकचरित्रगणप्रमाणं द्विविधं पण्णत्ते, तं जहा-इत्तरिए य प्रज्ञप्तं, तद्यथा-इत्वरिकञ्च यावत्कआवकहिए य।
थिकञ्च । छेदोवढावणियचरित्तगुणप्पमाणे छैदोपस्थापनीयचरित्रगुणप्रमाणं दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साइयारे द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा सातिय निरइयारे य।
चारञ्च निरतिचारञ्च । परिहारविसुद्धियचरित्तगणप्पमाणे परिहारविशुद्धिकचरित्रगुणप्रमाणं दुविहे पण्णते, तं जहा-निव्विस- द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-निविश्यमाणए य निन्विट्ठकाइए य । मानकञ्च निविष्टकायिकञ्च । सुहमसंपरायचरित्तगुणप्पमाणे सूक्ष्मसम्परायचरित्रगुणप्रमाणं विहे पण्णत्ते, तं जहा-संकि- द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-सक्लिश्यलिस्समाणए य विसुज्झमाणए य। मानकञ्च विशुद्धयमानकञ्च । अहक्खायचरित्तगुणप्पमाणे दुविहे यथाख्यातचरित्रगुणप्रमाणं द्विविध पण्णत्ते तं जहा पडिवाई य प्रज्ञप्तं, तद्यथा प्रतिपाति च अप्रतिअपडिवाई य।
पाति च। अहवा-छउमथिए य केवलिए अथवा छानस्थिकञ्च केवलिय। से तं चरित्तगणप्पमाणे । से तं कञ्च । तदेतद् चरित्रगुणप्रमाणम् । जीवगुणप्पमाणे । से तं गुणप्प- तदेतद् जीवगुणप्रमाणम् । तदेतद् माणे॥
गुणप्रमाणम् । ५५४. से कि तं नयप्पमाण? नयप्प- अथ कि तद् नयप्रमाणम् ?
माणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा- नयप्रमाणं त्रिविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा
छेदोपस्थापनीय चारित्र गुण प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सातिचार और निरतिचार।
परिहारविशुद्धिक चारित्र गुण प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे -निविश्यमानक और निविष्ट कायिक ।
सूक्ष्मसम्पराय चारित्र गुण प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे-संक्लिश्यमानक और विशुद्घमानक ।
यथाख्यात चारित्र गुण प्रमाण के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे--प्रतिपाती और अप्रतिपाती।
अथवा छाद्मस्थिक और कैवलिक । वह चारित्रगुण प्रमाण है।' वह जीवगुण प्रमाण है । वह गुण प्रमाण है।
५५४. वह नय प्रमाण क्या है ?
नय प्रमाण के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे
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