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________________ २८० अणुओगदाराई सूत्र ४१८-४४० ३. (सूत्र ४१८-४४०) जैन काल मीमांसा में काल को दो भागों में विभक्त किया गया है- गणित विषयक काल और औपमिक काल । गणित विषयक काल का अन्तिम बिंदू शीर्षप्रहेलिका है। इससे आगे गणित का प्रयोग नहीं किया जाता। औपमिक कालखण्ड को उपमा के द्वारा समझाया गया है। पल्य और सागर ये दो उपमान हैं। पल्य की उपमा से प्रमित काल पल्योपम और सागर की उपमा से प्रमित काल सागरोपम कहलाता है । देखें चार्ट औपम्यकाल पल्योपम सागरोपम उद्धार अद्धा क्षेत्र सूक्ष्म (सू. ४२४-४२६) व्यावहारिक (सू. ४२२,४२३) । सूक्ष्म (सू. ४३८-४४०) व्यावहारिक (सू. ४३६,४३७) व्यावहारिक (सू. ४३१,४३२) (सू. ४२९,४३०) दस कोटाकोटी पल्योपम=एक सागरोपम । सागरोपम के भेदोपभेद पल्योपमवत् ज्ञेय हैं। सूत्र ४१९ शब्द विमर्श उद्धारपल्योपम' ---जिस कालखण्ड में बालाग्र अथवा बालखण्ड का उद्धार किया जाता है, उसकी संज्ञा उद्धार पल्योपम है।' अद्धापल्योपम-अद्धा कालवाचक शब्द है। इस कालखण्ड में सौ वर्ष से बालाग्र अथवा बालखण्ड का उद्धार किया जाता है (निकाला जाता है) इसलिए इसकी संज्ञा अद्धा पल्योपम है। इसका वैकल्पिक अर्थ है कि इससे आयु का कालमान किया जाता है इसलिए इसकी संज्ञा अद्धा पल्योपम है। उद्धार और अद्धा दोनों कालखण्डों में बालाग्र निकाले जाते हैं फिर भी प्रथम का नामकरण उद्धार को प्रधान मान कर किया गया है तथा दूसरे का नामकरण काल को प्रधान मान कर किया गया है।' क्षेत्रपल्योपम–जो कालखण्ड आकाश-प्रदेशों के अवहार से मापा जाता है उसकी संज्ञा है क्षेत्रपल्योपम ।' सूत्र ४२० सूक्ष्म-जिसमें बालान के सूक्ष्म खण्ड करने की कल्पना की जाती है वह सूक्ष्म उद्धार पल्योपम कहलाता है। व्यावहारिक --जिसमें स्थूल बालाग्र का अवहरण किया जाता है, वह व्यावहारिक उद्धार पल्योपम होता है। १. (क) अचू. पृ. ५७ : बालग्गाण बालखण्डाण वा उद्धार इमातो र इयाण आणिज्जति अतो अद्धापलितोवमं । त्तणतो उद्धारपलितं भग्ण ति । .. (ख) अहाव. पृ.८४ । (ख) अहावृ.पृ. ८४। ३. (क) अचू. पृ.५७ : अणुसमयखेत्तपल्लपदेसावहारत्तणतो २. (क) अचू. पृ. ५७ : अद्धा इति काल: सो य परिमाणतो खेत्तपलितोवर्म। वाससयं बालग्गाण खण्डाण वा समुद्धरणतो अद्धा (ख) अहावृ. पृ. ८४ । पलितोवमं भण्णति । अहवा अद्धा इति आउद्धा सा Jain Education Intemational For Private & Personal use only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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