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नौवां प्रकरण : सूत्र ४०७-४१२
२३१ उच्चत्त-उव्वेह-परिक्खेवा मवि- उद्वेध-परिक्षेपा: मीयन्ते ।
ज्जति ॥ ४११. से समासओ तिविहे पण्णत्ते, तं स समासत: त्रिविधः प्रज्ञप्तः, ४११. संक्षेप में उसके तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे
जहा-सेढीअंगुले पयरंगुले घणं- तद्यथा-श्रेण्यंगुल: प्रतरांगुलः धनां- श्रेणीअंगुल, प्रतरअंगुल और घनअंगुल । गुले। असंखेज्जाओ जोयणकोडा- गलः । असंख्येया योजनकोटीकोट्यः ___ असंख्य कोडाकोड़ योजन की एक श्रेणी कोडीओ सेढी, सेढी सेढोए गुणिया श्रेणिः, श्रेणिः श्रेण्या गुणिता प्रतरः, होती है, श्रेणी को श्रेणी से गुणित करने पर पयर, पयरं सेढोए गुणियं लोगो, प्रतरः श्रेण्या गुणित: लोकः, संख्येयेन प्रतर और प्रतर को श्रेणी से गुणित करने संखेज्जएणं लोगो गुणितो संखेज्जा लोक: गुणित: संख्येया: लोकाः, पर लोक होता है। लोक को संख्येय से लोगा, असंखेज्जएणं लोगो गुणितो असंख्येयेन लोक: गुणित: असंख्येया: गुणित करने पर संख्येय लोक और असंख्येय असंखेज्जा लोगा। लोकाः ।
से गुणित करने पर असंख्येय लोक होते
४१२. एएसि णं सेढोअंगुल-पयरंगुल- एतेषां श्रेण्यंगुल-प्रतरांगुल-घना
घणंगलाणं कयरे कयरेहितो अप्पे गुलानां कतरः कतरेभ्यः अल्पं वा वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए बहु वा तुल्यं वा विशेषाधिकं वा ? वा? सम्वत्थोवे सेढीअंगले, पय- सर्वस्तोक: श्रेण्यंगुलः, प्रतरांगुलः रंगले असंखेज्जगुणे, घणंगुले असंख्येयगुणः, घनांगुल: असंख्येयअसंखेज्जगुणे। से तं पमाणंगले। गुणः । स एष प्रमाणांगुलः । तदेतद् से तं विभागनिष्फण्णे। से तं विभागनिष्पन्नम्। तदेतत् क्षेत्रखेत्तप्पमाणे ॥
प्रमाणम् ।
४१२. इन श्रेणीअंगुल, प्रतरअंगुल और घनअंगुल
में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? __ श्रेणीअंगुल सबसे छोटा है, प्रतरअंगुल उससे असंख्येय गुना है और घनअंगुल उससे असंख्येय गुना है । वह प्रमाणांगुल है। वह विभागनिष्पन्न है। वह क्षेत्र प्रमाण है।
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