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________________ १८२ अणओगदाराई महिका-स्निग्ध और सधन कुहासा।' कपिहसित-अकस्मात् आकाश में जाज्वल्यमान और भयंकर शब्द-रूप-परिणति ।' अमोघा सूर्य-बिम्ब के नीचे होने वाली लम्बी-लम्बी श्यामल रेखाएं । तुलना एवं विशेष विमर्श के लिए द्रष्टव्य भगवई भाष्य ३।२५२ । सूत्र २८८ १६. (सूत्र २८८) पुद्गलास्तिकाय को अनादि पारिणामिक बतलाया गया है। प्रस्तुत सूत्र में परमाणु का सादिपारिणामिक के रूप में निर्देश है । इसका हेतु यह है कि परमाणु परमाणु के रूप में असंख्यातकाल से अधिक नहीं रह सकता, उसे उस समय के बाद बदलना होता है। इस परिवर्तन की अपेक्षा से परमाणु को सादि पारिणामिक भाव की कोटि में रखा गया है। इसी प्रकार स्वर्ग, नरक आदि को भी शाश्वत कहा गया है। किन्तु प्रत्येक पौद्गलिक रचना असंख्येय काल के बाद रूपान्तरित होती है। रूपान्तरण की इस दृष्टि से उन्हें सादि पारिणामिक भाव की कोटि में रखा है। सूत्र २९१ १७. (सूत्र २६१) संसारी प्राणी में औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक तीन भाव अनिवार्यतः होते हैं। इस दृष्टि से दो भावों का विकल्प संभव नहीं है । केवल भंग रचना की दृष्टि से इन्हें प्रस्तुत किया गया है।' १. (क) अचू. पृ. ४४ भूमौ पतितंवोपलक्ष्यते महिया। (ख) अहावृ. पृ. ६४। (ग) अमवृ. प. १११॥ २. (क) अचू. पृ. ४४ : कविहसियं-अम्बरतले ससई लक्खिज्जति। (ख) अहावृ. पृ. ६४। (ग) अमव. प. १११। ३. अंसुभ. १९६७-७४। ४. अहाव. पृ. ६४,६५ : इह च यद्यप्यौदयिकौपशमिकमात्रनिर्वृत्तः असंभवी संसारिणां जघन्यतोऽप्यौवयिकक्षायोपशमिकपारिणामिकमावत्रयोपेतत्वात् तथापि भंगकरचनामात्रदर्शनार्थत्वाददुष्टः। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003627
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Anuogdaraim Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages470
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size24 MB
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