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सूत्र २४६, २४७
१. सूत्र (२४६,२४७)
वैकल्पिक रूप से उपक्रम के छः प्रकार बतलाए गए हैं। उसमें दूसरा प्रकार है-नाम । इससे पूर्व आनुपूर्वी का निरूपण किया गया है। अब नाम का निरूपण प्रासंगिक है। नाम का अर्थ है -संज्ञाकरण । सूत्रकार ने एक गाथा में नाम की परिभाषा बतलाई है । नामकरण के तीन आधार हैं-द्रव्य, गुण और पर्याय । विश्वकोष में जितने भी नाम हैं वे सब द्रव्यवाची, गुणवाची अथवा पर्यायवाची हैं।
टिप्पण
एक नाम का प्रतिपादन नामत्व की दृष्टि से किया गया है। किसी भी द्रव्य के गुण या पर्याय का बोध कराने वाले जितने शब्द हैं, वे सब भिन्न-भिन्न होने पर भी नाम कहलाते हैं। एक ही वस्तु के अवस्था भेद के अनुसार जितने अभिधान होते हैं, वे एक 'नाम' शब्द में आ जाते हैं। अभेद की प्रधानता या समग्रता की दृष्टि से 'एक नाम' का प्रतिपादन है ।
सूत्र २४८
२. ( सूत्र २४८ )
जिसके दो प्रकार बनते हों उसे द्विनाम कहा गया है। इसी प्रकार तीन, चार, पांच आदि प्रकारभेद के आधार पर तीन नाम, चार नाम, पांच नाम ज्ञातव्य हैं ।
सूत्र २४९
उदाहरण संस्कृत भाषा में है। क्योंकि ह्री, श्री, धी, स्त्री आदि शब्दों का द्व्यक्षर शब्दरूप बनते हैं जो कि रचनाकार को इष्ट नहीं है, इसलिए
सूत्र २५४
४. संमूच्छिम ( सम्मुच्छिम )
जो जन्म न तो देव और नारकों की तरह नियत स्थान में ही होता है और न जिसमें गर्भधारण की आवश्यकता होती है, उसे संमूर्च्छन कहते हैं। इस प्रकार जन्म लेने वाले सारे असंज्ञी जीव संमूच्छिम कहलाते हैं ।
५. पर्याप्त (पज्जत्तए)
३. ( सूत्र २४९ )
प्रस्तुत ग्रन्थ प्राकृत भाषा में है और इस सूत्र के प्राकृतीकरण किया जाए तो हिरी, सिरी, धीर, इत्थी आदि इनके संस्कृत उदाहरण दिए गए हैं।
जन्म के प्रारम्भ में होने वाली पोद्गलिक शक्ति पर्याप्ति कहलाती है। पर्याप्त नाम कर्म के उदय से जो जीव उस जन्म के योग्य सारी पर्याप्तियों को पूर्ण कर लेता है वह पर्याप्त कहलाता है ।
६. अपर्याप्त (अपजसए)
अपर्याप्त नाम कर्म के उदय से जो जीव अपने योग्य पर्याप्तियों (पौद्गलिक शक्तियों) को कहलाता है। जो जीव निश्चित रूप से अपर्याप्त अवस्था में मरता है वह लब्धि अपर्याप्त होता है पर अभी तक हुआ नहीं वह करण अपर्याप्त होता है ।
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सूत्र २६६
७. ( सूत्र २६६ )
व्याकरण के नियमानुसार एक शब्द में किसी वर्ण के आगमन को आगम कहते हैं । आगम मित्रवत् होता है। मित्र अपने मित्रों
१. ( क ) अचू. पृ. ४१ ।
(ख) अमवृ. प. ९५ ।
पूर्ण नहीं कर पाता वह अपर्याप्त तथा जो भविष्य में पर्याप्त होगा,
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