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प्र०४, सू० १४०-१५०, टि० २५-२६
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सूत्र १४८ २८. (सूत्र १४८)
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये तीन लोक व्यवस्था के आधारभूत द्रव्य हैं। धर्मास्तिकाय का लक्षण है गति और अधर्मास्तिकाय का लक्षण है स्थिति । गति और स्थिति से ही लोक की व्यवस्था होती है। जहां गति और स्थिति है वहां लोक है, जहां गति और स्थिति नहीं है वह अलोक है। इन दो द्रव्यों ने ही आकाश को दो भागों में विभक्त किया है। लोकाकाश ओर अलोकाकाश । जीव और पुद्गल ये गति, स्थिति और अवगाह करने वाले द्रव्य हैं । काल इन सबके परिणमन का हेतु है। इस प्रकार इनका क्रम भी सार्थक बनता है।
सूत्र १५० २६. (सूत्र १५०)
जितने अंकों का विकल्प जानना हो उसके लिए उनको परस्पर गुणा करने से जो संख्या आती हो, उतने ही विकल्प होते हैं । जैसे-६ संख्या के विकल्प करने हैं। १४२४३४४४५४६=७२० विकल्प । एक कोष्ठक में कितने विकल्प होंगे और कितने कोष्ठक होंगे? इसके लिए विधि यह है -अंतिम दो अंकों को गुणा करने से जो संख्या आती है उतने ही कोष्ठक होते हैं । जैसेयहां अंतिम दो अंक ५ और ६ हैं । ५४६-३० कोष्ठक बनते हैं। एक कोष्ठक में कितने विकल्प होते हैं ? इसके लिए शेष अंकों को परस्पर गुणा करने से जो संख्या आती है, उतने ही एक कोष्ठक में विकल्प होते हैं। प्रस्तुत प्रकरण में शेष ४ संख्या है, चारों को गुणा करने से १४२४३४४ =२४ विकल्प हुए। एक कोष्ठक में २४ विकल्प होंगे और ३० कोष्ठक होंगे। कुल विकल्प २४४३०-७२० होंगे। इसके विकल्प बनाने का क्रम यह है-सबसे छोटी संख्या को पहले स्थापित करें, फिर क्रमशः संख्या स्थापित करते हुए सबसे बड़ी संख्या अंत में स्थापित करें। एक कोष्ठक में अंतिम दो संख्या अपरिवर्तित रहती है । सुविधा के लिए यंत्र देखें । ३० कोष्ठक बनाने का क्रम यह है -दूसरे कोष्ठक में अंतिम संख्या अपरिवर्तित रहती है, उससे पूर्व की संख्या क्रमशः उससे छोटी ग्रहण की जाती है । देखें कोष्ठक २,३,४ और ५ । पहले कोष्ठक में ५६, दूसरे में ४६, तीसरे में ३६, चौथे में २६ और पांचवें में १६ की संख्या अपरिवर्तित है। उससे आगे के कोष्ठकों में अंतिम संख्या सबसे बड़ी ६ थी। अब उसके स्थान पर उससे छोटी संख्या ५ स्थापित करें और शेष पांच अंकों में सबसे बड़ी हो उसे उसके पहले स्थापित करें। यहां छट्ठा कोष्ठक ६५ बनता है। छठे कोष्ठक में ६५ की संख्या अपरिवर्तनीय रहेगी। सातवें से दसवें तक क्रमशः उससे क्रमसंख्या का परिवर्तन होता रहेगा। जैसे सातवें मे ४५ आठवें में ३५ नौवें में २५ और दसवें में १५ की संख्या अपरिवर्तनीय रहेगी। ५५ हो नहीं सकते क्योंकि एक संख्या दो बार नहीं आ सकती। ११वें से १५वे कोष्ठक में पांचवीं संख्या अपरिवर्तित रहेगी और उससे आगे के कोष्ठकों में अंतिम संख्या क्रमशः छोटी होती जाएगी। इस नियम के अनुसार ११वें से १५वें कोष्ठक में ६४,५४,३४,२४,१४ की संख्या अपरिवर्तित रहेगी। १६वें से २०वें कोष्ठक में ६३,५३,४३,२३,१३ की संख्या अपरिवर्तित रहेगी। २१वें से २५वें कोष्ठक में ६२,५२,४२, ३२,१२ की संख्या अपरिवर्तनीय रहेगी। २६वें से ३०वें कोष्ठक में ६१,५१,४१,३१,२१ की संख्या अपरिवर्तनीय रहेगी।
इसके बाद एक कोष्ठक में परिवर्तन इस प्रकार होता है। अन्तिम दो बड़ी संख्याएं अपरिवर्तित रहती हैं। शेष संख्याएं क्रमशः स्थापित करें। चौथी संख्या ४ है, वह छह विकल्पों तक अपरिवर्तनीय रहती है, तीसरी संख्या दो-दो विकल्पों के बाद क्रमश: छोटी होती जाती है। इस क्रम से संख्या की स्थापना इस प्रकार होगी--.३४,२४,१४ फिर ४३,२३,१३ फिर ४२.३२,१२ फिर ४१,३१,२१ होगी। छह-छह विकल्पों में अन्तिम संख्या अपरिवर्तनीय है। पहले ६ में ४ की संख्या, दूसरे ६ में ३ की संख्या, तीसरे ६ में २ की संख्या और चौथ ६ में १ की संख्या अपरिवर्तनीय है। पहली दो संख्या दूसरे विकल्प में परिवर्तित होती रहती है। पहले विकल्प में १२ की संख्या है तो दूसरे विकल्प में २१ होगी। पहले विकल्प में १६ है तो दूसरे में ६१ होगी। देखेंअगले पृष्ठ के कोष्ठक
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