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________________ उत्तरज्झयणाणि ६९४ परिशिष्ट ५: भौगोलिक परिचय बलुचिस्तान से लगा ईरान का प्रदेश मानते हैं।' राय डेविड्स ने इसे स्थान से करते हैं। हेमचन्द्राचार्य ने इसे अयोध्या का शाखानगर उत्तर-पश्चिम के छोर का प्रदेश माना है और इसकी राजधानी के माना है। आवश्यक नियूक्ति में विनीता के बहिर्भाग में 'पुरिमताल' रूप में द्वारका का उल्लेख किया है। नामक उद्यान का उल्लेख हुआ है। वहां भगवान् ऋषभ को केवलज्ञान यह जनपद जातीय अश्वों और खच्चरों के लिए प्रसिद्ध था। उत्पन्न हुआ था और उसी दिन चक्रवर्ती भरत की आयुधशाला में जैन-आगम-साहित्य तथा आगमेतर-साहित्य में स्थान-स्थान पर __ चक्ररत्न की उत्पत्ति हुई थी। भरत का छोटा भाई ऋषभसेन कम्बोज के घोड़ों का उल्लेख मिलता है। आचार्य बुद्धघोष ने इसे 'पूरिमताल' का स्वामी था। जब भगवान ऋषभ वहां आए तब उसने 'अश्वों का घर' कहा है। उसी दिन भगवान् के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। विजयेन्द्र सूरि ने पञ्चाल और काम्पिल्ल–कनिंघम के अनुसार आधुनिक एटा, इस नगर की पहचान आधुनिक प्रयाग से की है, किन्तु अपनी मैनपुरी फर्रुखाबाद और आस-पास के जिले पचाल राज्य की मान्यता की पुष्टि के लिए कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। सीमा के अन्तर्गत आते हैं।' उन्होंने इतना मात्र लिखा है कि 'जैन-ग्रन्थों में प्रयाग का प्राचीन पञ्चाल जनपद दो भागों में विभक्त था-(१) उत्तर पचाल नाम 'पुरिमताल' मिलता है।५५ और (२) दक्षिण पञ्चाल। पाणिनि व्याकरण में इसके तीन विभाग सातवा वर्षावास समाप्त कर भगवान् महावीर कुंडाक सन्निवेश मिलते हैं-(१) पूर्व पञ्चाल, (२) अपर पञ्चाल और (३) दक्षिण से 'लोहार्गला' नामक स्थान पर गए। वहां से उन्होंने पुरिमताल की पञ्चाल । ओर विहार किया। नगर के बाहर 'शकटमुख' नाम का उद्यान था। द्विमुख पञ्चाल का प्रभावशाली राजा था। पञ्चाल और भगवान् उसी में ध्यान करने ठहर गए। लाट देश एक शासन के अधीन भी रहे हैं। पुरिमताल से विहार कर भगवान उन्नाग और गोभूमि होते बौद्ध-साहित्य में उल्लिखित १६ महाजनपदों में पञ्चाल का हुए राजगृह पहुंचे। उल्लेख है। किन्तु जैन-आगम में निर्दिष्ट १६ जनपदों में उसका चित्र का जीव सौधर्म कल्प से च्युत हो पुरिमताल नगर में उल्लेख नहीं है। एक श्रेष्ठी के घर में उत्पन्न हुआ। आगे चलकर ये बहुत बड़े कनिंघम में काम्पिल्ल की पहचान उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद ऋषि हुए। जिले में फतेहगढ़ से २८ मील उत्तर-पूर्व, गंगा के समीप में स्थित जार्ल सरपेन्टियर ने माना है कि 'पुरिमताल' का उल्लेख 'कांपिल' से की है। कायमगंज रेलवे स्टेशन से यह केवल पांच मील अन्यत्र देखने में नहीं आता। यह 'लिपि-कर्ता' का दोष संभव है। दूर है। महाराज द्विमुख इसी नगर में शोभाहीन ध्वजा को देख कर इसके स्थान पर 'कुरु-पञ्चाल' या ऐसा ही कुछ होना चाहिए।' प्रतिबुद्ध हुए।" यह अनुमान यथार्थ नहीं लगता। हम ऊपर देख चुके हैं कि हस्तिनापुर-इसकी पहिचान मेरठ जिले के मवाना तहसील में मेरठ । पुरिमताल का अनेक ग्रन्थों में उल्लेख हुआ है। यह अयोध्या का से २२ मील उत्तर-पूर्व में स्थित हस्तिनापुर गांव से की गई है। उपनगर था, ऐसा भगवान् महावीर के विहार-क्षेत्र से प्रतीत होता है। जैन आगमों में उल्लिखित दस राजधानियों में इसका उल्लेख दशाण है और यह कुरु जनपद की प्रसिद्ध नगरी थी। जिनप्रभ सूरि ने बुन्देलखण्ड में धसान नदी बहती है। उसके आसपास के इसकी उत्पत्ति का ऊहापोह करते हुए लिखा है-ऋषभ के सौ पुत्र प्रदेश का नाम 'दसण्ण' दशार्ण है। थे। उनमें एक का नाम 'कुरु' था। उसके बाद से 'कुरु' जनपद दशार्ण नाम के दो देश मिलते हैं—एक पूर्व में और दूसरा प्रसिद्ध हुआ। कुरु के पुत्र का नाम 'हस्ती' था। उसने हस्तिनापुर पश्चिम में। पूर्व दशार्ण मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ जिले में माना जाता नगर बसाया। इस नगर के पास गंगा नदी बहती थी। पाली-साहित्य है। पश्चिम-दशार्ण में भोपाल राज्य और पूर्व-मालव का समावेश में इसका नाम 'हत्थिपुर' या "हत्थिनीपुर' आता है। होता है। पुरिमताल-इसकी अवस्थिति के विषय में भिन्न-भिन्न मान्यताएं बनास नदी के पास बसी हुई मृत्तिकावती नगरी दशार्ण हैं। कई विद्वान् इसकी पहचान मानभूम के पास 'पुरुलिया' नामक जनपद की राजधानी मानी जाती है। कालीदास ने दशार्ण जनपद का १. बौद्ध कालीन भारतीय भूगोल, पृ० ४५६-४५७। २. बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० २८।। ३. उत्तरज्झयणाणि, ११-१६। ४. सुमंगलविलासिनी, भाग १, पृ० १२४ । ५. देखिए-दी एन्शियन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ० ४१२, ७०५। ६. पाणिनि व्याकरण, ७।३।१३। ७. सुखबोधा, पत्र १३५-१३६। ८. प्रभावक चरित, पृ० २४। ६. अंगुत्तरनिकाय, भाग १, पृ० २१३। १०. दी एन्शियन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ० ४१३। ११. सुखबोधा, पत्र १३५-१३६ । १२. ठाणं, १०।२७ १३. (क) विविध तीर्थकल्प, पृ० २७। (ख) हत्थिपुर या हत्थिनीपुर के पाली विवरणों में इसके समीप गंगा के होने का कोई उल्लेख नहीं है। रामायण, महाभारत, पुराणों में इसे गंगा के पास स्थित बताया है। १४. भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० ३३। १५. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र १३३८६ : अयोध्याया महापुर्याः, शाखानगरमुत्तमम् । ययौ पुरिमतालाख्यं, भगवानृषभध्वजः।। १६. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ३४२ : उज्जाणपुरिमताले पुरी विणीआइ तत्थ नाणवरे। चक्कुप्पया य भरहे निवेअणं चेव दुण्हंपि।। १७. तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृ० २०६। १८. सुखबोधा, पत्र १८७।। १६. दी उत्तराध्ययन, पृ० ३२८ । Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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