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________________ उत्तरायणाणि ६९५ परिशिष्ट ५ : भौगोलिक परिचय उल्लेख करते हुए 'विदिशा' (आधुनिक भिलसा) को उसकी राजधानी नगरी का उल्लेख है और राजा का नाम 'एषुकार' है। के रूप में माना है। राजतरंगिणी (७।१३१०, १३१२) में 'हुशकपुर' नगर का जैन आगमों में उल्लिखित साढ़े पच्चीस आर्य देशों में उल्लेख हुआ है। आज भी काश्मीर में 'बारामूल' (सं० बराह, 'दशार्ण' जनपद का उल्लेख है।' बराहमूल) से दो मील दक्षिण-पूर्व में वीहट नदी के पूर्वी किनारे पर दशार्ण जनपद के प्रमुख नगर दो थे--(१) दशार्णपुर (एलकच्छ, 'हुशकार' या 'उसकार' नगर विद्यमान है। एडकाक्ष-झांसी से ४० मील उत्तर-पूर्व 'एरच-एरछ' गांव) और ह्युयेनशान ने काश्मीर की घाटी में, ईस्वी सन् ६३१ के (२) दशपुर (आधुनिक मंदसौर) सितम्बर महीने में पश्चिम की ओर से प्रवेश किया था। उसने आर्य महागिरि इसी जनपद में दशार्णपुर के पास गजानपद पूजनीय स्थानों की उपासना कर 'हुशकार' में रात्रि बिताई।१२। (दशार्णकूट) पर्वत पर अनशन कर मृत्यु को प्राप्त हुए।' दशार्णभद्र अबुरिहान ने भी 'उसकार' का उल्लेख कर उसे नदी के इस जनपद का राजा था। महावीर ने उसे इसी पर्वत पर दीक्षित दोनों ओर स्थित माना है। किया था। अल्बरूनी का कथन है कि काश्मीर की नदी झेलम 'उसकार' काशी और वाणारसी—काशी जनपद पूर्व में मगध, पश्चिम में वत्स नगर से होती हुई घाटी में प्रवेश करती है।" सम्भव है कि यह (वंस), उत्तर में कोशल और दक्षिण में 'सोन' नदी तक विस्तृत था। उसकार' नगर ही 'इषुकार—एषुकार' नगर हो। काशी जनपद की सीमाएं कभी एक-सी नहीं रही हैं। काशी कलिंग वर्तमान उड़ीसा का दक्षिणी भाग 'कलिंग' कहा जाता है। और कौशल में सदा संघर्ष चलता रहता और कभी काशी कौशल साढ़े पचीस आर्य-देशों में इसकी गणना की गई है। बौद्ध-ग्रन्थों में का और कभी कौशल काशी का अंग बन जाता था। ई० पू० उल्लिखित १६ महाजनपदों में इसका उल्लेख नहीं है। छठी-पांचवीं शताब्दी में काशी कोशल के अधीन हो गया था। यूआन चुआङ्ग ने कलिंग जनपद का विस्तार पांच हजार उत्तराध्ययन सूत्र में हरिकेशबल के प्रकरण में टीकाकार ने बताया 'ली' और राजधानी का विस्तार बीस 'ली' बताया है।" है कि हरिकेशबल वाणारसी के तिन्दुक उद्यान में अवस्थित थे। वहां कलिंग देश की राजधानी काञ्चनपुर मानी जाती थी।६ कौशलिकराज की पुत्री भद्रा यक्ष-पूजन के लिए आई। इस घटना से सातवीं शताब्दी से यह नगर भुवनेश्वर' नाम से प्रसिद्ध है। काशी पर कौशल का प्रभूत्व प्रमाणित होता है। काशी राज्य का गान्धार-इसकी अवस्थिति की चर्चा करते हुए कनिंघम ने लिखा है विस्तार ३०० योजन बताया गया है। कि इसका विस्तार पूर्व-पश्चिम में एक हजार 'ली' और उत्तर-दक्षिण वाराणसी काशी जनपद की राजधानी थी। यह नगर 'बरना' में ५०० 'ली' था। इसके आधार पर यह पश्चिम में लंघान और (बरुणा) और 'असी'-इन दो नदियों के बीच में स्थित था। जलालाबाद तक, पूर्व में सिन्धु तक, उत्तर में स्वात और बुनिर पर्वत इसलिए इसका नाम 'वाराणसी' पड़ा। यह नैरुक्त नाम है। आधुनिक तक और दक्षिण में कालबाग पर्वत तक था। बनारस गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर गंगा और वरुणा के इस प्रकार स्वात से झेलम नदी तक का प्रदेश गान्धार के संगम-स्थल पर है। अन्तर्गत था। जैन-आगमोक्त दस राजधानियों में इसका उल्लेख है। यूआन् जैन-साहित्य में गान्धार की राजधानी 'पुण्ड्रवर्धन' का उल्लेख चूआग ने वाराणसी को देश और नगर-दोनों माना है। उससे है और बौद्ध-साहित्य में 'तक्षशिला' का। वाराणसी देश का विस्तार चार हजार 'ली' और नगर का विस्तार गान्धार उत्तरापथ का प्रथम जनपद था। लम्बाई में १८ 'ली' और चौड़ाई ६ 'ली' बताया है। सौवीर-आधुनिक विद्वान् ‘सौवीर' को सिन्धु और झेलम नदी के काशी, कौशल आदि १८ गणराज्य वैशाली के नरेश चेटक की बीच का प्रदेश मानते हैं। कुछ विद्वान् इसे सिन्धु नदी के पूर्व में ओर से कृणिक के विरुद्ध लड़े थे। काशी के नरेश 'शंख' ने मुल्तान तक का प्रदेश मानते हैं। भगवान् महावीर के पास दीक्षा ली थी। 'सिन्धु-सौवीर' ऐसा संयुक्त नाम ही विशेष रूप से प्रचलित इषकार (उस्यार) नगर-जैन-ग्रन्थकारों ने इसे कुरु-जनपद का है। किन्त सिन्ध और सौवीर पृथक्-पृथक् राज्य थे। उत्तराध्ययन में एक नगर माना है।" यहां 'इषुकार' नाम का राजा राज्य करता था। उद्रायण को 'सौवीरराज' कहा गया है।० टीका से भी उसकी पुष्टि उत्तराध्ययन में वर्णित इस नगर में सम्बन्धित कथा का होती है। उसमें उद्रायण को सिन्धु, सौवीर आदि सोलह जनपदों का उल्लेख बौद्ध-जातक (सं० ५०६) में मिलता है। वहां 'वाराणसी' अधिपति बतलाया गया है।" १. मेघदूत, पूर्वमेघ, श्लोक २३-२४।। १२. दि एन्शिएन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ० १०४-१०५। २. बृहत्कल्प भाष्य, भाग ३, पृ० ६१३। १३. वही, पृ० १५४। ३. आवश्यक चूर्णि, उत्तरभाग, पृ० १५६-१५७ १४. अल्बरूनी'ज इण्डिया, पृ० २०७। ४. सुखबोधा, पत्र १७४।। १५. यूआन् चुआङ्ग'स ट्रेवेल्स इन इण्डिया, भाग २, पृ० १६८। ५. धजविहे? जातक (सं० ३६१), जातक भाग ३, पृ० ४५४। १६. बृहत्कल्प सूत्र, भाग ३, पृ० ६१३। ६. दि एन्शिएन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ० ४१६ १७. दि एन्शिएन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया (सं० १८७१), पृ० ४८। ७. विविध तीर्थकल्प, पृ०७२। १८. इण्डिया अज ड्रिस्क्राइब्ड इन अर्ली ट्रेक्ट्स ऑफ बुद्धिज्म एण्डे ८. यूआन् चुआड्गस ट्रेवेल्स इन इण्डिया, भाग २, पृ० ४६-४८। जैनिज्म, पृ०७०। ६. निरयावलिका, सूत्र १। १६. पोलिटिकल हिस्ट्री ऑफ एन्शिएन्ट इण्डिया, पृ० ५०७, नोट १। १०. ठाणं ८४१ २०. उत्तराध्ययन, १८४८। ११. उत्तराध्ययन नियुक्ति, गाथा ३६५ । २१. सुखबोधा, पत्र २५२। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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