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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन ३६ : श्लोक ७१-७७ टि० १५
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इंदनीले-इन्द्रनील (नीलम)। इसका वर्ण नीला (हरा) (E) मैलेयक-शिंगरफ के समान रंग वाला। होता है। कहीं-कहीं इसकी उत्पत्ति सिंघल द्वीप में बताई गई (१०) अहिच्छत्रक-फीके रंग वाला। है।' यह आठ प्रकार का होता है
(११) कूर्म-खुरदरा-जिसके ऊपर छोटी-छोटी बूंद-सी (१) नीलावलीय-रंग सफेद होने पर भी जिसमें नीले
उठी हुई हो। रंग की धाराएं हों।
(१२) प्रतिकूर्य-दागी-जिस पर धब्बे लगे हुए हों। इन्द्रनील-मोर के पेंच की तरह नीले रंग वाला। (१३) सुगंधिकूप—मूंग के समान रंग वाला। कलायपुष्पक-मटर के फूल सदृश रंग वाला। (१४) क्षोरपक-दूध के समान वर्ण वाला। महानील-भौंरे के समान गहरे काले रंग वाला। (१५) शुक्तिचूर्णक-चित्रित—मिले हुए कई रंगों वाले। जाम्बवाभ-जामुन के समान रंग वाला।
(१६) शिला-प्रवालक-प्रवालक–अर्थात् मूंगे के समान जीमूतप्रभ-मेघ के समान रंग वाला।
रंग वाला। नंदक-भीतर से सफेद और बाहर से नीला। (१७) पुलक जो बीच में काला हो। सवन्मध्य-जिसमें से जल-प्रवाह के समान किरणें (१८) शुक्रपुलक-जो बीच में सफेद हो। बहती हों।
सोगंधिए (सं० सौगन्धिक) माणिक्य । कौटलीय अर्थशास्त्र चन्दन-चन्दन जैसी गंध वाला मणि।
में माणिक्य की पांच जातियां बतलाई गई हैं। उनमें यह प्रथम गेरुय- इसका अर्थ 'रुधिराक्ष' है। इसका वर्ण गेरु जैसा जाति का है। सौगन्धिक नामक कमल के समान कुछ नीलेपन होता है।
को लिए हुए लाल रंग का होने के कारण इसे 'सौगन्धिक' कहा हंसगन्म-मूलाचार में 'बक' नामक मणि का उल्लेख जाता है। है। वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'बक के रंग का पुष्पराग' किया वेरुलिए-वैडूर्य। यह आठ प्रकार का होता हैहै। कौटलीय अर्थशास्त्र के अनुसार 'पुष्पराग' वैडूर्य का एक (१) उत्पलवर्ण-लाल कमल के समान रंग वाला, प्रकार है। 'बक' बगुले का रंग भी हंस जैसा होता है, इसलिए (२) शिरीषपुष्पक-सिरीस के फूल के समान रंग वाला, हंसगर्भ का यही अर्थ संभव है। सरपेन्टियर ने 'हंस' का अर्थ
उदकवर्ण-जल के समान स्वच्छ रंग वाला, सूर्य कर इसको ‘सूर्यगर्भ' नाम का मणि माना है।
वंशराग-बांस के पत्ते के समान रंग बाला, पुलए-पुलक। यह बीच में काला होता है। कौटलीय
शुकपत्रवर्ण-तोते के पंखों की तरह हरे रंगों वाला, अर्थशास्त्र (२।११।२६) में मणियों की अठारह अवान्तर जातियां (६) पुष्यराग-हल्दी के समान पीले रंग वाला, बताई गई हैं
(७) गोमूत्रक–गोमूत्र के समान रंग वाला, (१) विमलक-सफेद और हरे रंग से मिश्रित।
(८) गोमेदक-गोरोचन के समान रंग वाला। (२) सस्यक-नीला।
रयणपरिक्खा में भी इसकी उत्पत्ति की चर्चा की गई अञ्जनमूलक-नीला और काला मिश्रित। है। पाणिनि भाष्य के अनुसार यह बालवाय पर्वत में होता गोपित्तक-गाय के पित्त के समान रंग वाला। था। विदूरनगर में मणिकार उसे तराशते थे, इसलिए वह सुलमक-सफेद।
'वैदूर्य' नाम से प्रसिद्ध हुआ।१२ लोहिताक्ष-किनारों की ओर लाल रंग वाला और जलकंते-जलकान्त। इसका अर्थ 'उदक वर्ण' है। बीच में काला।
कौटलीय अर्थशास्त्र के अनुसार यह वैडूर्य का एक प्रकार है।" (७) मृगाश्मक-सफेद और काला मिला हुआ।
सूरकते—सूर्यकान्त। सूर्य की किरणों का स्पर्श होने पर (८) ज्योतिरसक-सफेद और लाल मिला हुआ। आग उगलने वाला मणि। कौटलीय अर्थशास्त्र में इसे स्फटिक १. सिरि रयणपरिक्खा, पयरण ४६ :
६. कौटलीय अर्थशास्त्र, २।११।२६ : सौगन्धिकः पारागोऽनवधरागाः नीलघण मोरकण्ठः अलसीगिरिकन्नि कुसुम संकासा।
परिजातपुष्पको बालसूर्यकः । ऐतेया सुमणेहा सिंघलदीवम्मि नीलमणी।।
- १०. वही, २।११।२६ : वैडूर्य उत्पलवर्णः शिरीषपुष्पक उदकवर्णो वंशरागः कौटलीय अर्थशास्त्र, २।११।२६ : नीलावलीय इन्द्रनीलः कलायपुष्पको शुकपत्रवर्णः पुण्यरागो गोमूत्रको गोमेदकः।। महानीलो जाम्बवाभो जीमतप्रभो नन्दकः सवन्मध्यः ।
११. सिरि रयणपरिक्खा , पयरण ५१ : ३. मूलाचार, ५११२, वृत्ति।
रयणायरस्स मज्झे, कुवियगयनामजण चउतत्थ। ४. वही, ५।१२, वृत्ति।
चइमुरनगे जायइ, बइडुज्ज वंसपत्तासं।। ५. वही, ५१२, वृत्ति।
१२. पाणिनि भाष्य, ४।३।८४ । ६. वही, ५।१२, वृत्ति।
१३. मूलाचार, ५।११। ७. कौटलीय अर्थशास्त्र, २।११।२६।
१४. कौटलीय अर्थशास्त्र, २.११।२६ । ८. The Uttaradhyayan Sutra, p. 403.
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