________________
लेश्या-अध्ययन
५८३
अध्ययन ३४ : श्लोक ३६-४८
अतः
३६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना मुहूर्ताधं तु जधन्या
शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और तेत्तीस सागरा मुहुत्तहिया त्रयस्त्रिंशत्सागरा मुहूर्ताधिकाः।। उत्कृष्ट स्थिति मुहूर्त अधिक तेतीस सागर की होती उक्कोसा होइ ठिई
उत्कृष्टा भवति स्थितिः नायव्वा सुक्कलेसाए।। ज्ञातव्या शुक्ललेश्यायाः।। ४०. एसा खलु लेसाणं
एषा खलु लेश्यानां
लेश्याओं की यह स्थिति ओघरूप (अपृथग्-भाव) से ओहेण ठिई उ वण्णिया होइ। ओधेन स्थितिस्तु वर्णिता भवति। कही गई है। अब आगे पृथग्-भाव से चारों गतियों चउसु वि गईसु एत्तो चतसृष्वपि गतिषु अतः में लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूंगा।
लेसाण ठिइं तु वोच्छामि।। लेश्यानां स्थितिं तु वक्ष्यामि।। ४१. दस वाससहस्साई
दशवर्षसहस्त्राणि
नारकीय जीवों के कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति काऊए ठिई जहन्निया होइ। कापोतायाः स्थितिर्जधन्यका भवति। पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर तिण्णुदही पलिओवम युदधिपल्योपम
की होती है। असंखभागं च उक्कोसा असङ्ख्यभागं चोत्कृष्टा।। ४२. तिण्णुदही पलिय
युदधिपल्य
नील लेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें मसंखभागा जहन्नेण नीलठिई। असङ्ख्यभागा जघन्येन नीलस्थितिः। भाग अधिक तीन सागर और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम दस उदही पलिओवम दशोदधिपल्योपम
के असंख्यातवें भाग अधिक दश सागर की होती है। असंखभागं च उक्कोसा।।। असङ्ख्यभागं चोत्कृष्टा ।। ४३. दस उदही पलिय
दशोदधिपल्य
कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें मसंखभागं जहन्निया होइ। असङ्ख्यभागं जघन्यका भवति। भाग अधिक दश सागर और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस तेत्तीससागराई त्रयस्त्रिंशत्सागराः
सागर की होती है। उक्कोसा होइ किण्हाए।। उत्कृष्टा भवति कृष्णायाः।। ४४. एसा नेरइयाणं
एषा नैरयिकाणां
यह नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ। लेश्यानां स्थितिस्तु वर्णिता भवति। किया गया है। इससे आगे तिर्यंच, मनुष्य और देवों तेण परं वोच्छामि ततः परं वक्ष्यामि
की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूंगा। तिरियमणुस्साण देवाणं ।।। तिर्यमनुष्याणां देवानाम् ।। ४५. अंतोमुत्तमद्धं
अन्तर्मुहूर्त्ताध्वानं
तिर्यञ्च और मनुष्य में जितनी लेश्याएं होती हैं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जाउ। लेश्यानां स्थितिः यस्मिन् यस्मिन् या तु। उनमें से शुक्ल लेश्या को छोड़कर शेष सब लेश्याओं तिरियाण नराणं वा तिरश्चां नराणां वा
की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त की वज्जित्ता केवलं लेसं।। वर्जयित्वा केवला लेश्याम् ।। होती है। ४६. मुहुत्तद्धं तु जहन्ना मुहूर्ता) तु जघन्या
शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ। उत्कृष्टा भवति पूर्वकोटी तु। उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष न्यून एक करोड़ पूर्व की नवहि वरिसेही ऊणा नवभिर्वर्षेरूना
होती है। नायव्वा सुक्कलेसाए।।
ज्ञातव्या शुक्ललेश्यायाः ।। ४७. एसा तिरियनराणं
एषा तिर्यङ्नराणां
यह तिर्यञ्च और मनुष्य के लेश्याओं की स्थिति का लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ।
लेश्यानां स्थितिस्तु वर्णिता भवति। वर्णन किया गया है। इससे आगे देवों की लेश्याओं तेण परं वोच्छामि ततः परं वक्ष्यामि
की स्थिति का वर्णन करूंगा। लेसाण ठिई उ देवाणं ।। लेश्यानां स्थितिस्तु देवानाम् ।। ४८. दस वाससहस्साई
दशवर्षसहस्राणि
भवनपति और वाणव्यन्तर देवों के कृष्ण लेश्या की किण्हाए ठिई जहन्निया होइ। कृष्णायाः स्थितिर्जघन्यका भवति। जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति पलियमसंखिज्जइमो पल्यासंख्येयतमः
पल्योपम के असंख्यातवें भाग की होती है। उक्कोसा होइ किण्हाए ।।।
उत्कृष्टा भवति कृष्णायाः।।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org