SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 587
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तरज्झयणाणि ५४६ अध्ययन ३१ : श्लोक २० टि० ३७ (१४) जिस ऐश्वर्यशाली व्यक्ति या जन-समूह के द्वारा समवाय दशाश्रुतस्कन्ध ऐश्वर्य प्राप्त किया, उसी के भोगों का विच्छेद करना। (१५) सर्पिणी का अपने अण्डे को निगलना; पोषण देने वाले व्यक्ति, सेनापति और प्रशास्ता को मार डालना। (१६) राष्ट्र-नायक, निगम-नेता (व्यापारी-प्रमुख), सुप्रसिद्ध ३७. सिद्धों के इकतीस आदि-(अतिशायी) गुणों...में सेठ को मार डालना। (सिद्धाइगुण) (१७) जो जनता के लिए द्वीप और त्राण हो, वैसे सिद्धों के ३१ आदि-गुण इस प्रकार हैंजन-नेता को मार डालना। (१) आभिनिबोधिक ज्ञानावरण का क्षय, (१८) संयम के लिए तत्पर मुमुक्षु और संयमी साधु को (२) श्रुत ज्ञानावरण का क्षय, संयम से विमुख करना।। (३) अवधि ज्ञानावरण का क्षय, (१६) अनन्त ज्ञानी का अवर्णवाद बोलना-सर्वज्ञता के (8) मनःपर्यव ज्ञानावरण का क्षय, प्रति अश्रद्धा उत्पन्न करना। (५) केवल ज्ञानावरण का क्षय, (२०) मोक्ष-मार्ग की निन्दा कर जनता को उससे विमुख (६) चक्षु ज्ञानावरण का क्षय, करना। (७) अचक्षु दर्शनावरण का क्षय, (२१) जिन आचार्य और उपाध्याय से शिक्षा प्राप्त की हो (८) अवधि दर्शनावरण का क्षय, उन्हीं की निन्दा करना। (E) केवल दर्शनावरण का क्षय, (१०) निद्रा का क्षय, (२२) आचार्य और उपाध्याय की सेवा और पूजा न करना। (११) निद्रा-निद्रा का क्षय, (२३) अबहुश्रुत होते हुए भी अपने आपको बहुश्रुत (१२) प्रचला का क्षय, कहना। (१३) प्रचला-प्रचला का क्षय, (२४) अतपस्वी होते हुए भी अपने आपको तपस्वी (१४) सत्यानद्धि का क्षय (१५) सातावेदनीय का क्षय, कहना। (२५) ग्लान साधर्मिक की 'उसने मेरी सेवा नहीं की थी' (१६) असातावेदनीय का क्षय, इस कलुषित भावना से सेवा न करना। (१७) दर्शन-मोहनीय का क्षय, (२६) ज्ञान, दर्शन और चारित्र का विनाश करने वाली (१८) चारित्र-मोहनीय का क्षय, कथाओं का बार-बार प्रयोग करना। (१६) नैरयिक आयुष्य का क्षय, (२७)अपने मित्र आदि के लिए बार-बार निमित्त, (२०) तिर्यञ्च आयुष्य का क्षय, वशीकरण आदि का प्रयोग करना। (२१) मनुष्य आयुष्य का क्षय, (२२) देव आयुष्य का क्षय, (२८) मानवीय या पारलौकिक भोगों की लोगों के सामने निंदा करा और छिपे-छिपे उनका सेवन करते (२३) उच्च गोत्र का क्षय, जाना। (२४) नीच गोत्र का क्षय, (२६) देवताओं की ऋद्धि, द्युति, यश, बल और वीर्य का (२५) शुभ नाम का क्षय, मखौल करना। (२६)अशुभ नाम का क्षय, (३०) देव-दर्शन न होने पर भी मुझे देव-दर्शन हो रहा (२७) दानान्तराय का क्षय, है—ऐसा कहना। (२८)लाभान्तराय का क्षय, उक्त विवरण समवायांग (समवाय ३०) के आधार पर (२६) भोगान्तराय का क्षय, है। दशाश्रुतस्कन्ध (दशा ६) में प्रथम पांच स्थान कुछ परिवर्तन (३०) उपभोगान्तराय का क्षय, के साथ मिलते हैं (३१) वीर्यान्तराय का क्षय। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy