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________________ उत्तरज्झयणाणि ४९८ अध्ययन २६ : सूत्र ४८-५६ टि० ५६-६४ पाने वाला उन्हें सह लेता है। क्षांति का अर्थ यदि 'सहिष्णुता' किया गया है। किया जाए तो परीषह-विजय का अर्थ व्यापक हो जाता है। ६२. (सूत्र ५०) सहिष्णूता से सभी परीषहों पर विजय पाई जा सकती है। क्षान्ति, मुक्ति, आर्जव और मार्दव-ये चारों क्रमशः केवल गाली और वथ पर ही नहीं। क्रोध, लोभ, माया और मान की विजय के परिणाम हैं। ५९. अकिंचनता (अकिंचण) देखिए-सूत्र ६८-७१।। जो भावना या संकल्पपूर्वक पदार्थ समूह को त्याग देता जिसमें मार्दव का विकास होता है, वह जाति, कुल, बल, है वह अकिंचन है। अकिंचन का एक अर्थ दरिद्र होता है, वह रूप, तप, श्रुत, लाभ और ऐश्वर्य-इन आठ मद-हेतुओं पर यहां विवक्षित नहीं है। जो त्यागपूर्वक अकिंचन बनता है, वह विजय पा लेता है। तीन लोक का अधिपति बनता है ६३. (सूत्र ५१-५३) अकिञ्चनोऽहमित्यास्व, त्रैलोक्याधिपतिर्भवे। भाव-सत्य का अर्थ अन्तरात्मा की सचाई है। सत्य और योगिगम्यमिदं प्रोक्तं, रहस्यं परमात्मनः।। शुद्धि में कार्य-कारण-भाव है। भाव की सचाई से भाव की ६०. (सूत्र ४९) विशुद्धि होती है। तिरेपनवें सूत्र में योग-सत्य का उल्लेख है। माया और असत्य तथा ऋजुता और सत्य का परस्पर उसका एक प्रकार मनः-सत्य है। सहज ही भाव और मन का गहरा सम्बन्ध है। इस सूत्र में ऋजुता के चार परिणाम बतलाए भेद समझने की जिज्ञासा होती है। इन्द्रिय से सूक्ष्म मन और गए हैं--(१) काया की ऋजुता, (२) भाव की ऋजुता, (३) भाषा मन से सूक्ष्म भाव (आत्मा का आन्तरिक अध्यवसाय) होता है। की ऋजुता और (8) अविसंवादन। मन के परिणाम को भी भाव कहा जाता है, किन्तु प्रकरण के ऋजुता का परिणाम ऋजुता कैसे हो सकता है, सहज अनुसार यहां इसका अर्थ अन्तर्-आत्मा ही संगत है। ही यह प्रश्न होता है। उसका समाधान स्थानांग के एक सूत्र करण-सत्य का सम्बन्ध भी योग-सत्य से है। करने का में मिलता है। वहां कहा गया है-सत्य के चार प्रकार हैं- अर्थ है मन, वचन और काया की प्रवृत्ति। फिर भी करने की (१) काया की ऋजुता, (२) भाषा की ऋजुता, (३) भाव की विशेष स्थिति को लक्ष्य कर उसे योग-सत्य से पृथक् बतलाया ऋजुता और (४) अविसंवादन योग।' गया है। करण-सत्य का अर्थ है विहित कार्य को सम्यक प्रकार काया की ऋजुता-यथार्थ अर्थ की प्रतीति कराने वाली से और तन्मय होकर करना। योग-सत्य का अर्थ है-मन, काया की प्रवृत्ति । वेष-परिवर्तन, अंग-विकार आदि का अकरण। वचन और काया को अवितथ स्थिति में रखना। भाषा की ऋजुता-यथार्थ अर्थ की प्रतीति कराने वाली इन तीन सूत्रों में विशेष चर्चनीय पद 'परलोगधम्मस्स वाणी की प्रवृत्ति। उपहास आदि के निमित्त वाणी में विकार न आराहए' और 'करणसत्तिं' हैं। परलोक-धर्म की आराधना का लाना। अर्थ यह है कि भाव-सत्य से आगामी जन्म में भी धर्म की भाव की ऋजुता-जैसा आन्तरिक भाव हो वैसा ही प्राप्ति सुलभ होती है। प्रकाशित करना। भाव का शाब्दिक अर्थ है-होना, परिणमन करण-शक्ति का अर्थ है-वैसा कार्य करने का सामर्थ्य होना। यहां भाव शब्द का अर्थ-चेतना का परिणाम, कर्मावृत जिसका पहले कभी अध्यवसाय या प्रयत्न भी न किया गया चैतन्य की एक प्रकाश-रश्मि। जिसमें भाव-ऋजुता होती है हो। करण-सत्यता और करण-शक्ति के अभाव में ही कथनी उसकी वाणी और काया की प्रवृत्ति अन्तश्चेतना के अनुरूप और करनी में अन्तर होता है। उन दोनों के विकसित होने पर होती है। व्यक्ति 'यथावादी तथाकारी' बन जाता है। अविसंवादन योग-किसी कार्य का संकल्प कर उसे ६४. (सत्र ५४-५६) करना। दूसरों को न ठगना। इन तीन सूत्रों में गुप्ति के परिणामों का निरूपण है। इस सूत्र के आधार पर कहा जा सकता है कि ऋजुता गुप्तियां तीन हैं—(9) मन-गुप्ति, (२) वचन-गुप्ति और (३) कायका परिणाम सत्य है। गुप्ति । ६१. मृदु-मार्दव से (मिउमद्दव) जो समित (सम्यक्-प्रवृत्त) होता है, वह नियमतः गुप्त मृदु का अर्थ है—विनम्र। मार्दव का अर्थ है-विनम्र होता है और जो गुप्त होता है वह समित हो भी सकता है स्वभाव अथवा विनम्रतापूर्ण आचरण । जिस व्यक्ति का आचरण और नहीं भी। अकुशल मन का निरोध करने वाला मनोगुप्त मृदुतापूर्ण होता है वही मृदु कहलाता है। अतिशय मृदुता को ही होता है और कुशल मन की प्रवृत्ति करने वाला मनोगुप्त द्योतित करने के लिए 'मृदु-मार्दव' दोनों का संयुक्त प्रयोग भी होता है और समित भी। इसी प्रकार अकुशल वचन और १. ठाणं, ४।१०२ : चउविहे सच्चे पण्णते, तं जहा–काउज्जुयया, भासुज्जुयया भावुज्जुयया, अविसंवायणाजोगे। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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