________________
केशि-गौतमीय
३७९
अध्ययन २३ : श्लोक ६७-७६
द्वीप किसे कहा गया है ?—केशी ने गौतम से कहा। केशी के कहते-कहते ही गौतम इस प्रकार बोले
जरा और मृत्यु के वेग से बहते हुए प्राणियों के लिए धर्म द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है।
गौतम ! उत्तम है तुम्हारी प्रज्ञा। तुमने मेरे इस संशय को दूर किया है। मुझे एक दूसरा संशय भी है। गौतम ! उसके विषय में भी तुम मुझे बतलाओ।
महा-प्रवाह वाले समुद्र में नौका तीव्र गति से चली जा रही है। गौतम ! तुम उसमें आरूढ़ हो। उस पार कैसे पहुंच पाओगे?
जो छेद वाली नौका होती है, वह उस पार नहीं जा पाती। किन्तु जो नौका छेद वाली नहीं होती, वह उस पार चली जाती है।
६७.दीवे य इइ के वुत्ते?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु
गोयमो इणमब्बवी।। ६८.जरामरणवेगेणं
बुज्झमाणाण पाणिणं। धम्मो दीवो पइट्ठा य
गई सरणुत्तमं ।। ६६.साहु गोयम ! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं ।
तं मे कहसु गोयमा?। ७०.अण्णवंसि महोहंसि
नावा विपरिधावई। जंसि गोयममारूढो
महं पारं गमिस्ससि ?।। ७१.जा उ अस्साविणी नावा
न सा पारस्स गामिणी। जा निरस्साविणी नावा
सा उ पारस्स गामिणी।। ७२.नावा य इइ का वुत्ता ?
केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु
गोयमो इणमब्बवी।। ७३.सरीरमाहु नाव त्ति
जीवो वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो
जं तरंति महेसिणो।। ७४.साहु गोयम ! पण्णा ते छिन्नो मे संसओ इमो। अन्नो वि संसओ मज्झं
तं मे कहसु गोयमा !।। ७५.अंधयारे तमे घोरे । चिट्ठति पाणिणो बहू।। को करिस्सइ उज्जोयं ।
सव्वलोगंमि पाणिणं ?।। ७६.उग्गओ विमलो भाणू
सव्वलोगप्पभंकरो। सो करिस्सइ उज्जोयं सव्वलोगंमि पाणिणं ।।
द्वीपश्चेति क उक्तः? केशी गौतममब्रवीत्। केशिनमेवं ब्रुवन्तं तु गौतम इदमब्रवीत्।। जरामरणवेगेने उह्यमानानां प्राणिनाम्। धर्मो द्वीपः प्रतिष्ठा च गतिः शरणमुत्तमम् ।। साधुः गौतमः ! प्रज्ञा ते छिन्नो मे संशयोऽयम्। अन्योऽपि संशयो मम तं मां कथय गौतम!11 अर्णवे महौधे नौविपरिधावति। यस्यां गौतम ! आरूढः कथं पारं गमिष्यसि?।। या त्वाश्राविणी नौः न सा पारस्य गामिनी। या निराश्राविणी नौः सा तु पारस्य गामिनी।। नौश्चेति कोक्ता? केशी गौतममब्रवीत्। केशिनमेवं ब्रुवन्तं तु गौतम इदमब्रवीत्।। शरीरमाहुनौरिति जीव उच्यते नाविकः। संसारोऽर्णव उक्तः यं तरन्ति महैषिणः।। साधुः गौतम ! प्रज्ञा ते छिन्नो मे संशयोऽयम्। अन्योऽपि संशयो मम तं मां कथय गौतम!11 अन्धकारे तमसि घोरे तिष्ठन्ति प्राणिनो बहवः। कः करिष्यत्युद्योतं सर्वलोके प्राणिनाम् ?" उद्गतो विमलो भानुः सर्वलोकप्रभाकरः। सः करिष्यत्युद्योतं सर्वलोके प्राणिनाम् ।।
नौका किसे कहा गया है ?--केशी ने गौतम से कहा। केशी के कहते-कहते ही गौतम इस प्रकार बोले
शरीर को नौका, जीव को नाविक और संसार को समुद्र कहा गया है। महान्—मोक्ष की एषणा करने वाले इसे तैर जाते हैं।
गौतम ! उत्तम है तुम्हारी प्रज्ञा । तुमने मेरे इस संशय को दूर किया है। मुझे एक दूसरा संशय भी है। गौतम ! उसके विषय में भी तुम मुझे बतलाओ।
लोगों को अन्ध बनाने वाले घेर तिमिर में बहुत लोग रह रहे हैं। इस समूचे लोक में उन प्राणियों के लिए प्रकाश कौन करेगा?
समूचे लोक में प्रकाश करने वाला एक विमल भानु उगा है। वह समूचे लोक में प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org