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________________ उत्तरज्झयणाणि ३४० अध्ययन २० : श्लोक १६-२३ टि० १०-१५ उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह राजा पर प्रहार कर दे। राजा अंतरिक्ष शब्द अधिक संगत लगता है। उसका अर्थ हैके सामने मंत्री की शक्ति व्यर्थ चली गई। अंतश्चेतना। अब राजा की बारी थी कि वह अपनी शक्ति का प्रदर्शन १३. (श्लोक २२) करे। एक दिन उसने भी अपने किसी सामन्त को आज्ञापित प्राचीन काल में चिकित्सा की मुख्यतः दो पद्धतियां करने हए मंत्री को चांटे लगाने का निर्देश दिया। सामन्त ने थीं औषध विज्ञान और भेषज विज्ञान। प्राणाचार्य द्रव्यों के आव देखा न ताव वह तत्काल उठा और सबके देखते-देखते रासायनिक विज्ञान के द्वारा शरीर के रोगों का निवारण करते मंत्री के मुंह पर तमाचा जड़ दिया। थे। वे द्रव्यगुण परिज्ञान में निष्णात होते थे। यह औषध विज्ञान राजा के पास सत्ता की शक्ति थी, जिसके आधार पर की चिकित्सा पद्धति है। वह सब कुछ करा सकता था। मंत्री के पास वैसी शक्ति नहीं इस पद्धति के साथ-साथ मंत्र-तंत्र की चिकित्सा पद्धति थी। यह अन्तर केवल सत्ता और असत्ता का ही था। का भी विकास हुआ और चिकित्सा की दृष्टि से अनेक मांत्रिक १०. उत्पत्ति (पोत्थ) - तथा तांत्रिक ग्रन्थों की रचना हुई। इस चिकित्सा पद्धति का ___ 'पोत्थं' शब्द के दो संस्कृत रूप होते हैं—प्रोत्थां और नाम भेषज विज्ञान था। इन चिकित्सा पद्धतियों से रोग पुस्तम् । वृत्तिकार ने प्रोत्थां का अर्थ मूल उत्पत्ति किया है। निवारण करने वाले प्राणाचार्य कहलाते थे। प्रस्तुत संदर्भ में यही अर्थ संगत लगता है। प्रस्तुत श्लोक में प्रयुक्त 'आयरिअ' शब्द प्राणाचार्य का ११. प्राचीन नगरों में असाधारण सुन्दर (पुराणपुरभेयणी) वाचक है। यहां तीन विशेषण प्रयुक्त हैं—विद्या-मंत्र-चिकित्सक, वृत्तिकार ने इसका शाब्दिक अर्थ-अपने गुणों से शस्त्रकुशल या शास्त्रकुशल चिकित्सक तथा मंत्रमूल विशारद । असाधारण होने के कारण अन्य नगरों से अपनी भिन्नता ये तीनों विशेषण भिन्न-भिन्न प्राणाचार्यों के द्योतक हैं। एक ही दिखाने वाला नगर किया है। उन्होंने एक पाठान्तर-'नगराण व्यक्ति इन तीनों में विशारद हो, ऐसा आवश्यक नहीं था। कोई पुडभेयण' का उल्लेख किया है। इसका अर्थ है-प्रधान नगरी। आयुर्वेद में, कोई मंत्र-विद्या में और कोई शल्य-चिकित्सा में डॉक्टर हर्मन जेकोबी ने मूल में इसका अर्थ इन्द्र किया निष्णात होता था। है तथा इसकी मीमांसा करते हुए लिखा है-उत्तराध्ययन के १४. गुरु परम्परा से प्राप्त (जहाहिय) वृत्तिकार इसका शाब्दिक अर्थ मात्र प्रस्तुत करते हैं। किन्तु यह वृत्तिकार ने इसके दो संस्कृत रूपों की व्याख्या की हैस्पष्ट प्रतीत होता है कि पुरभेदन का अर्थ पुरंदर-इन्द्र या १. यथाहितं-हित के अनुरूप २. यथाधीत-गुरु परम्परा से पुरभिद्-शिव होना चाहिए। पुरभिद् का एक अर्थ इन्द्र भी है। आगत वमन-विरेचन आदि रूप वाली चिकित्सा । इसके दो प्रस्तुत प्रसंग में डॉक्टर हर्मन जेकोबी का यह अर्थ संस्कृत रूप और हो सकते हैं-१.यथाऽहितं २. यथाहृतं । उपयुक्त नहीं लगता। 'पुराणपुरभेयणी' यह कोशांबी का विशेषण अधीत का संस्कृत रूप अहिय भी बनता है। अनुवाद यथाधीत है और यह उसकी प्रधानता का सूचक मात्र है। के आधार पर किया गया है। १२. अन्तश्चेतना (अंतरिच्छं) १५. चतुष्पाद (चाउप्पाय) 'अंतरिच्छं' शब्द के दो संस्कृत रूप बनते हैं-अन्तरेच्छं चिकित्सा के चार पाद होते हैं—वैद्य, औषध, रोगी और और अन्तरिक्षम्। वृत्तिकार ने अंतरेच्छं शब्द को मानकर रोगी की शुश्रूषा करने वाले परिचारक। जहां इन चारों का पूर्ण उसका अर्थ मध्यवर्ती इच्छा किया है। प्रस्तुत संदर्भ में योग होता है, उसे 'चतुष्पाद-चिकित्सा' कहते हैं।' स्थानांग में १. बृहवृत्ति, पत्र ४७५ : प्रोत्था वा प्रकृष्टोत्थानरूपाम् । ५. आप्टे-संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी : अन्तरिक्षं-'शरीरेष्वन्तः अक्षयं २. वही, पत्र ४७५ : पुराण पुरभेयणि त्ति पुराणपुराणि भिनत्ति- न पृथिव्यादिवत् क्षीयते'। स्वगुणैरसाधारणत्वाद् भेदेन व्यवस्थापयति पुराणपुरभेदिनी। ६. काश्यपसंहिता, इन्द्रियस्थान ३।४।५ : जैन सूत्राज, पार्ट २, डॉ० जेकोबी, पृष्ठ १०२ : औषधं भेषजं प्रोक्तं, द्विप्रकारं चिकित्सितम् । मूल तथा फुटनोट-There is a Town Kausambi by name, which is औषधं द्रव्यसंयोगं, ब्रुवते दीपनादिकम् ।। among towns what Indra is (among the Gods), हुतव्रततपोदानं, शान्तिकर्म च भेषजम् । Purana Purabhedani. As usual the commentators give a purely etymological explanation. But it is obvious that Purabhedana must have a similar meaning as Purandara-Indra, or Purabhid ७. बृहद्वृत्ति, पत्र ४७५ : 'आचार्याः' इति प्राणाचार्या वैद्य इति यावत् । Siva. The latter word occurs in later literature only, and besides, ८. वही, पत्र ४७५ : 'सत्थकुसल' त्ति शस्त्रेषु शास्वेषु वा कुशलाः Siva does not yet seem to have been generally acknowledged as शस्त्रकुशला शास्त्रकुशला वा। the supreme god, when and where the Jaina Sutras were composed. ६. वही, पत्र ४७५ : 'यथाहितं' हितानतिक्रमेण यथा, धीतं The Vedic word Purbhid, 'destroyer of castles', also presents itself as an analogy: though it is not yet the exclusive epithet of a god. वा-गुरुसम्प्रदायागतवमनविरेचनकादिरूपाम्। It is frequently applied to Indra. १०. वही, पत्र ४७५ : 'चाउप्पाय' त्ति चतुष्पदा भिषग्भेषजातुरप्रतिधार४. बृहबृत्ति, पत्र ४७५ : 'अन्तरा' मध्ये इच्छां वा अभिमतवस्त्वभिलाषम्। कात्मकचतुर्धा। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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