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उत्तरज्झयणाणि
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अध्ययन १६ : श्लोक १४-१७
एकाग्रचित वाला मुनि दुर्जय काम-भोगों और ब्रह्मचर्य में शंका उत्पन्न करने वाले पूर्वोक्त सभी स्थानों का वर्जन करे।
दुर्जयान् कामभोगांश्च नित्यशः परिवर्जयेत्। शंकास्थानानि सर्वाणि वर्जयेत् प्रणिधानवान् ।। धर्माराम चरेद् भिक्षुः धृतिमान् धर्मसारथिः। धर्मारामरतो दान्तः ब्रह्मचर्यसमाहितः।।
धैर्यवान्,३ धर्म के रथ को चलाने वाला, धर्म के आराम में रत, दांत और ब्रह्मचर्य में चित्त का समाधान पाने वाला भिक्षु धर्म के आराम में विचरण करे।
१४.दुज्जए कामभोगे य निच्चसो परिवज्जए। संकट्ठाणाणि सव्वाणि
वज्जेज्जा पणिहाणवं ।। १५.धम्माराम चरे भिक्खू धिइमं धम्मसारही। धम्मारामरए दंते बंभचेरसमाहिए। १६.देवदाणवगंधव्वा
जक्खरक्खसकिन्नरा। बंभयारिं नमसंति
दुक्करं जे करंति तं।। १७.एस धम्मे धुवे निअए
सासए जिणदेसिए। सिद्धा सिझंति चाणेण सिज्झिस्संति तहापरे ।।
उस ब्रह्मचारी को देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस
और किन्नर-ये सभी नमस्कार करते हैं, जो दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है।
देवदानवगन्धर्वाः यक्षराक्षसकिन्नराः। ब्रह्मचारिणं नमस्कुर्वन्ति दुष्करं यः करोति तत् ।। एष धर्मो ध्रुवो नित्यः शाश्वतो जिनदेशितः। सिद्धाः सिध्यन्ति चानेन सेत्स्यन्ति तथापरे।
यह ब्रह्मचर्य-धर्म ध्रुव, नित्य, शाश्वत" और अर्हत् के द्वारा उपदिष्ट है। इसका पालन कर अनेक जीव सिद्ध हुए हैं, हो रहे हैं और भविष्य में भी होंगे।
-त्ति बेमि।।
-इति ब्रवीमि।
—ऐसा मैं कहता हूं।
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