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________________ टिप्पण अध्ययन १६ : ब्रह्मचर्यसमाधि-स्थान १. आयुष्मन् ! (आउस) का कार्य था— श्रामण्य में शिथिल हुए साधुओं को पुनः संयम में आयुष्मन् शब्द शिष्य के आमंत्रण के लिए बहु-प्रयुक्त है। स्थिर करना । ये अनेक संपदाओं से युक्त होते थे। चूर्णिकार ने प्रश्न होता है कि जाति, कुल आदि के आधार पर भी आमंत्रण इसी ओर संकेत किया है।' शब्द प्रयुक्त हो सकता है, फिर आयुष्य के साथ ही उसका प्रयोग शान्त्याचार्य ने स्थविर का अर्थ गणधर किया है।' क्यों ? चूर्णिकार का अभिमत है कि सभी आमंत्रणवाची शब्दों में अगस्त्यचूर्णि में दशवैकालिक (189) में प्रयुक्त 'स्थविर' शब्द आयुष्यवाची आमंत्रण ही गुरुतर है। जब आयुष्य होता है तभी का यही अर्थ है।' गणधर के प्रमुख रूप से दो अर्थ होते हैंजाति आदि अन्यान्य बातें होती हैं। आयुष्य के अभाव में उनका (१) तीर्थंकर के प्रमुख शिष्य (२) अनुपम ज्ञान आदि के धारक। कोई मूल्य नहीं होता।' प्रस्तुत प्रकरण में गणधर का तात्पर्य गौतम आदि नौ गणधरों से चूर्णिकार ने विभिन्न पृष्ठभूमियों में 'आयुष्मन्' शब्द की नहीं है। अर्थ-मीमांसा प्रस्तुत की है। वह इस प्रकार है ३. (दस बंभचेरसमाहिठाणा) १. हे आयुष्मन् !-सुधर्मा स्वामी अपने प्रमुख शिष्य विशेष विमर्श के लिए देखें-इसी अध्ययन का आमुख। जम्बू को सम्बोधित कर कहते हैं- 'जैसा मैंने भगवान् ४. (संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले) महावीर के पास सुना है, वैसा मैं कहता हूं।' इससे इनमें 'बहुल' शब्द उत्तर-पद में है, जब कि वह पूर्व-पद शिष्य और आचार्य की व्यवस्था ज्ञापित होती है। में होना चाहिए-बहुलसंजमे, बहुलसंवरे, बहुलसमाहि । वृत्तिकार २. मैंने भगवान् के जीवनकाल में ऐसा सुना था-इससे ने इसका समाधान 'प्राकृतत्वात्' कह कर दिया है। बौद्धदर्शन सम्मत क्षणभंगुरवाद का निरसन होता है। संयम, संवर और समाधि का अर्थ चूर्णि और वृत्तियों में ३. मैंने भगवान् के समीप रहते हुए ऐसा सुना है- भिन्न-भिन्न हैइससे गुरुकुलवास में रहने की बात स्पष्ट होती है चर्णि बृहद्वृत्ति सुखबोधा और यह ख्यापित होती है कि शिष्य को सदा १. संयम-पृथ्वीकाय आश्रव-विरमण। संयम। गुरुकुलवास में रहना चाहिए-वसे गुरुकुले निच्चं। आदि का संयम। ४. मैंने गुरु (भगवान्) के चरणों की सेवा करते हुए २. संवर-पांच महाव्रत। आश्रवद्वार-निरोध। इंद्रिय-संवरण। ऐसा सुना है तात्पर्य है कि मैंने ये बातें विनय से ३. समाधि--ज्ञान आदि।' चित्त की चित्त की प्राप्त की हैं। इससे विनयमूल धर्म की बात स्पष्ट स्वस्थता। होती है। प्रस्तुत प्रसंग में संयम और संवर का सम्बन्ध इन्द्रियों के चूर्णिकार ने भगवान् महावीर, सुधर्मा और जम्बू का जो साथ है। इन्द्रियों का निग्रह करना संयम और उनका निरोध उल्लेख किया है, वह विमर्शनीय है। इस अध्ययन का संबंध करना संवर है। समाधि का अर्थ है—चित्त की स्वस्थता अथवा स्थविरों से है। इसलिए प्रज्ञापक आचार्य स्थविरों से श्रुत प्रज्ञप्ति एकाग्रता। का उल्लेख कर रहे हैं। ५. (सूत्र ३) २. स्थविर (गणघर) (थेरेहिं) इस अध्ययन में ब्रह्मचर्य के साधनों का निरूपण किया प्राचीनकाल की गण-व्यवस्था में सात पदों में एक पद गया है। साधन-शुद्धि के बिना साध्य की सिद्धि नहीं होती। जो 'स्थविर' का होता था। सातों पदों के कार्य विभक्त थे। स्थविर ब्रह्मचारी साधनों के प्रति उपेक्षा भाव रखता है, उसका ब्रह्मचर्य १. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० २४१ : सत्स्वप्यन्येषु जात्यादिषु आमंत्रणेषु आयुरेव गरीयः, कुतः? आयुषि सति सर्वाण्येव जात्यादीनी भवंति। २. वही, पृ०२४१। ३. वही, पृ० २४१ : धम्में स्थिरीकरणात् स्थविराः...... स्थविरैः-ऐश्वर्यादिसम्पदुपेतैः। ४. बृहपृत्ति, पत्र ४२२ : स्थविरैः—गणधरैः । ५. अगस्त्यचूर्णि: थेरो पुण गणहरो। ६. सुखबोधा, पत्र २१६। ७. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ०२४११ ८. बृहवृत्ति, पत्र ४२२-४२३ । ६. सुखबोधा, पत्र २१६। Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003626
Book TitleAgam 30 Mool 03 Uttaradhyayana Sutra Uttarajjhayanani Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages770
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size25 MB
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