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अध्ययन १० : श्लोक ३६, ३७ तू गांव में या नगर में संयत, बुद्ध और उपशान्त होकर विचरण कर, शांतिमार्ग को बढ़ा। हे गौतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।
उत्तरज्झयणाणि
१८६ ३६.बुद्धे परिनिब्बुडे चरे बुद्धः परिनिर्वृतश्चरेः
गामगए नगरे व संजए। ग्रामे गतो नगरे वा संयतः। संतिमग्गं च बूहए
शान्तिमार्गं च बुंहयेः समयं गोयम! मा पमायए।। समयं गौतम ! मा प्रमादीः।। ३७.बुद्धस्स निसम्म भासियं बुद्धस्य निशम्य भाषितं
सुकहियमट्ठपओवसोहियं । सुकथितमर्थपदोपशोभितम्। रागं दोसं च छिंदिया रांग दोषं च छित्त्वा सिद्धिगई गए गोयमे।। सिद्धिगतिं गतो गौतमः।।
अर्थपद (शिक्षापद) से उपशोभित एवं सुकथित भगवान् की वाणी को सुनकर राग और द्वेष का छेदन कर गौतम सिद्धिगति को प्राप्त हुए।
—त्ति बेमि।
-इति ब्रवीमि।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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