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अकाममरणीय
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अध्ययन ५ : श्लोक ५ टि०७-१०
3. स्लिम
कामनाओं में गृद्ध होता है, उनकी पूर्ति की उदग्र अभिलाषा
२. काम-वासना। उसमें जागती है, तब वह क्रूर बनता है, क्रूर कर्म करता है। भोग- १. जिनका उपभोग किया जाता है। उसमें करुणा का सोता सूख जाता है।
२. सभी इन्द्रियों के विषय। कामनाओं की संपूर्ति का एकमात्र साधन है अर्थ। मनुष्य बृहद्वृत्ति में इनके तीन अर्थ ये हैंनानाविध उपायों से अर्थ का अर्जन करता है। वह साधन-शुद्धि १. जिनकी कामना की जाती है वे हैं काम और के विवेक को भुला बैठता है।
जिनका उपभोग किया जाता है वे हैं भोग। चार पुरुषार्थ में धर्म और मोक्ष स्थविर हैं, बड़े हैं
२. शब्द और रूप है काम तथा स्पर्श, रस और गंध 'स्थविरे धर्ममोक्षे'। इसका अर्थ यह नहीं है कि अर्थ और काम
है भोग। जीवन की आवश्यकता नहीं हैं। ये भी जीवन के लिए अनिवार्य
स्त्रियों का संसर्ग या आसक्ति है काम तथा हैं। किन्तु भगवान् महावीर ने अध्यात्म-शास्त्र के आधार पर
शरीर के परिकर्म के साधन-धूपन, विलेपन आदि धर्म और मोक्ष को अधिक मूल्य दिया और अर्थ और काम को
हैं भोग। हेय बताया।
८. मिथ्या भाषण (कूडाय) विश्वविजेता सिकन्दर की कामनाएं आकाश को छू रही
'कूट' शब्द के अनेक अर्थ हैं-माया, झूट, यथार्थ का थीं। उनकी पूर्ति के लिए उसने खून की नदियां बहाई और
अपलाप, धोखा, चालाकी, अंत, समूह, मृग को पकड़ने का यंत्र विश्व-विजेता बनने के स्वप्न की संपूर्ति में लगा रहा। अन्ततः ।
आदि-आदि। उसे निराशा ही मिली और उसकी सारी कामनाएं मन में ही रह
प्रस्तुत प्रकरण की चूर्णि में इसके तीन अर्थ प्राप्त हैंगईं। एक कामना की पूर्ति दूसरी कामना को जन्म देती है और
नरक, मृग को पकड़ने का यंत्र और इन्द्रिय-विषय। यह शृंखला कभी टूटती नहीं, अनन्त बन जाती है। 'इच्छा हु
वृत्तिकार ने भी इसके तीन अर्थ किए हैं। प्रथम दो अर्थ आकाससमा अणंतिया'-भगवान की यह वाणी अक्षरशः चर्णि के समान हैं और तीसरा अर्थ है-मिथ्या भाषण आदि। सत्य है। कामनाओं का पार वही पाता है जो अकाम हो जाता है। सबकतांग 4/1/10 में 'गन्तकडे' तथा 'कडेन'-ये
कामनाओं से ग्रस्त प्राणी अत्यन्त क्रूर करें या विचार दो पद प्रयक्त हैं। 'एगन्तकड' में कड का अर्थ है.....विषम। करता रहता है। मगरमच्छ की भौहों में एक प्रकार का अत्यन्त एगन्तकड का अर्थ है---ऐसा स्थान जहां कोई भी समतल भूमि सूक्ष्म समनस्क प्राणी उत्पन्न होता है। उसे 'तंदुलमत्स्य' कहा न हो। जाता है। मगरमच्छ समुद्र में मुंह बाएं पड़ा रहता है। उसके
'कूडेन' शब्द में 'कूड' का अर्थ है-गलयंत्रपाश अथवा खुले मुंह में जल के साथ-साथ हजारों छोटे-बड़े मत्स्य प्रवेश
पाषाणसमूह। करते हैं और जल-प्रवाह के निर्गमन के साथ बाहर निकल जाते
सूत्रकृतांग १/१३/६ में भी 'कूडेण' शब्द का प्रयोग है। हैं। यह क्रम चलता रहता है। वह तंदुलमत्स्य मन ही मन वहां इसका अर्थ है-माया। वृत्ति में इसका अर्थ मृगपाश किया सोचता है—'अरे! कितना मूर्ख है यह मगरमच्छ ! क्यों नहीं गया है। यह मुंह में स्वतः प्रविष्ट होने वाले मत्स्यों को निगल जाता?
मिल जाता प्रस्तुत प्रकरण में 'कूट' का अर्थ मिथ्या वचन अधिक यदि मैं इसके स्थान पर होता तो सबको निगल जाता।' यह संगत लगता है। विचार उसके मन में निरन्तर बना रहता है। उसकी शक्ति नहीं
९. रति (आनन्द) (रई) कि वह उन मत्स्यों को निगल जाए, पर वह मन से इतना क्रूर । विचार कर प्रचुर कमों का संचय कर लेता है।
चूर्णि में 'रति' का अर्थ है--इष्ट विषय में प्रीति उत्पन्न ७. कामभोगों में (कामभोगेसु)
करने वाली वृत्ति। वृत्ति में इसका अर्थ है--कामवासना के
सेवन से उत्पन्न चित्त का आह्लाद। काम और भोग-ये दो शब्द हैं। चूर्णिकार ने इन दोनों । शब्दों के दो-दो अर्थ किए हैं
१०. (न मे दिठे परे लोए, चक्खुदिट्ठा इमा रई) काम--- १. जिसकी कामना की जाती है।
परलोक तो मैने देखा नहीं, यह रति (आनन्द) तो १. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृष्ट १३१ : काम्यन्त इति कामाः, भुज्जत इति ६. सूत्रकृतांग वृत्ति, पत्र १३६ : कूटेन गलयन्त्रपाशादिना पाषाणसमूहलक्षणेन भोगाः, कामा इति विसयाः, भोगाः सेसिंदियविसया।
वा। २. बृहद्वृत्ति, पत्र २४३ : काम्यन्त इति कामाः, भुज्यन्त इति भोगाः... ७. सूत्रकृतांग वृत्ति, पत्र २४१ : कूटवत्कूट यथा कूटेन मृगादिर्बद्धः।
कामा दुविहा पण्णत्ता-सद्दा रूवा य, भोगा तिविहा पण्णत्ता, तंजहा- .. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० १३२ : इष्टविषयप्रीतिप्रादुर्भावात्मिका रतिः । ___गंधा रसा फासा य ति......कामेषु-स्त्रीसंगेषु, भोगेषु धूपनविलेपनादिषु। ६. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र २४३ : रम्यतेऽस्यामिति रतिः-स्पर्शनादिसम्भोग३. उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० १३१-१३२ ।
जनिता चित्तप्रहलत्तिः। ४. बृहद्वृत्ति, पत्र २४३।
(ख) सुखबोधा, पत्र १०२ । ५. सूत्रकृतांग चूर्णि, पृ० १३८ : एर्गतकूडो णाम एकान्तविषमः ।
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