________________
टिप्पण:
अध्ययन ५: अकाममरणीय
१. महाप्रवाह वाले...संसार समुद्र से (अण्णसि महोहंसि) की भांति उत्सव-रूप मानता है, उस व्यक्ति के मरण को
संस्कृत कोश में पानी का एक नाम है 'अर्णस्'। यह सकाममरण कहा जाता है। इसे पंडितमरण (विरति का मरण) सकारान्त शब्द है। व्याकरण के अनुसार 'सकार' का लोपकर भी कहा जा सकता है। 'वकार' का आदेश करने पर 'अर्णव' शब्द निष्पन्न होता है। ५. (श्लोक ३) इसका अर्थ है-समुद्र । प्रस्तुत प्रकरण में भाव अर्णव का प्रसंग इस श्लोक में कहा गया है कि पंडित (चरित्रवान्) है। इसका अर्थ होगा-संसार रूपी समुद्र।
व्यक्तियों का 'सकाममरण' एक बार ही होता है। यह कथन ओघ का अर्थ है-प्रवाह । इसका प्रयोग अनेक संदों में केवली' की अपेक्षा से ही है। अन्य चरित्रवान् मुनियों का होता है, जैसे-जल का प्रवाह, जन्म-मरण का प्रवाह, दर्शनों 'सकाममरण' सात-आठ बार हो सकता है। या मतों का प्रवाह आदि।
इसमें आए हुए बाल और पंडित शब्दों का विशेष अर्थ है। प्रस्तुत प्रकरण में 'ओघ' शब्द जल-प्रवाह के अर्थ में जिस व्यक्ति के कोई व्रत नहीं होता उसे बाल कहा जाता है। प्रयुक्त है।
सर्वव्रती व्यक्ति को पंडित कहा जाता है। २. महाप्रज्ञ (महापन्ने)
६. (कामगिद्धे ......कूराई कुव्वई) इसका अर्थ है-महान् प्रज्ञावान् । वृत्तिकार ने प्रकरणवश धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—यह पुरुषार्थ-चतुष्टयी दो इसका अर्थ केवलज्ञानी, तीर्थंकर किया है।
युगलों में विभक्त है। एक युगल है धर्म और मोक्ष का और दूसरा ३. प्रश्न (पट्ठ)
युगल है अर्थ और काम का। पहले युगल में धर्म साधन है और इसके संस्कृत रूप दो हो सकते हैं-पृष्ट और स्पष्ट। मोक्ष साध्य तथा दूसरे युगल में अर्थ (धन) साधन है और काम पृष्ट का अर्थ है--पूछना या प्रश्न और स्पष्ट का अर्थ है- साध्य। इनके आधार पर दो विचारधाराएं बनीं--लौकिक और स्पष्ट, असंदिग्ध । इसके स्थान पर 'पण्ह' पाठ भी मिलता है। आध्यात्मिक। लौकिक धारा ने अर्थ और काम के आधार पर उसका अर्थ है-प्रश्न, जिज्ञासा।
जीवन की व्याख्या की और आध्यात्मिक धारा ने धर्म और मोक्ष चूर्णि और वृत्ति में 'पट्ट' का अर्थ स्पष्ट, असंदिग्ध किया के आधार पर जीवन की व्याख्या की। दोनों की समन्विति ही
जीवन की समग्रता है। ४. (अकाममरणं.....सकाममरणं)
___ दो वाद प्रचलित हैं—सुखवाद और दुःखवाद । सुखवाद का अकाममरण-जो व्यक्ति विषय में आसक्त होने के मूल है—काम। व्यक्ति सुख से प्रेरित होकर नहीं, कामना से कारण मरना नहीं चाहता किन्तु आयु पूर्ण होने पर वह मरता प्रेरित होकर प्रवृत्ति करता है। महावीर कहते हैं-'कामकामी है, उसका मरण विवशता की स्थिति में होता है इसलिए उसे खलु अयं पुरिसे'--यह मनुष्य काम (कामना) से प्रेरित होकर अकाममरण कहा जाता है। इसे बालमरण (अविरति का मरण) प्रवृत्ति करता है। काम ही मनुष्य की प्रेरणा है। फ्रायड ने भी भी कहा जा सकता है।
काम को ही सभी प्रवृत्तियों और विकासों का मूल माना है। सकाममरण-जो व्यक्ति विषयों के प्रति अनासक्त होने यह सच है, मनुष्य कामनाओं से प्रेरित होकर या के कारण मरण-काल में भयभीत नहीं होता किन्तु उसे जीवन कामनाओं की संपूर्ति के लिए हिंसा आदि करता है। जब वह १. अभिधान चिन्तामणि कोश, ४ ॥१३८ ।
मरणस्य, तथा च वाचक:२. बृहद्वृत्ति, पत्र १४१: महती-निरावरणतयाऽपरिमाणा प्रज्ञा केवलज्ञाना- "संचिततपोधनानां नित्यं व्रतनियमसंयमरतानाम् । त्मिका संवित् अस्येति महाप्रज्ञः।
उत्सवभूतं मन्ये मरणमनपराधवृत्तीनाम् ।।१।।" ३. (क) उत्तराध्ययन चूर्णि, पृष्ठ १३० : स्पष्टं नामासंदिग्धं ।
बृहद्वृत्ति, पत्र २४२ : तच्च 'उत्कर्षेण' उत्कर्षोपलक्षितं, केवलिसम्बन्धीत्यर्थः, (ख) बृहवृत्ति, पत्र २४१।
अकेवलिनो हि संयमजीवितं दीर्घमिच्छेयुरपि, मुक्त्यवाप्तिः इतः-स्यादिति, ४. बृहद्वृत्ति, पत्र २४२ : ते हि विषयाभिष्वङ्गतो मरणमनिच्छन्त एव केवलिनस्तु तदपि नेच्छन्ति, आस्तां भवजीवितमिति, तन्मरणस्योत्कर्षण म्रियन्ते।
मकामता 'सकृद्' एकवारमेव भवेत्, जघन्येन तु शेषचारित्रिणः सप्ताष्ट बृहद्वृत्ति, पत्र २४२ : सह कामेन-अभिलाषेण वर्तते इति सकामं वा वारान् भवेदित्याकूतमिति सूत्रार्थः । सकाममिव सकाम मरणं प्रत्यसंत्रस्ततया, तथात्वं चोत्सवभूतत्वात् तादृशां
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org